डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या (उ0प्र0)
गीत लोकभाषा में
गीत
जड़वा में बरसै सवनवाँ, सजन आइ छावा मकनवाँ।।
बुनिया के सँगवाँ ई हवुवा-बयरिया,
घुसि आवै घरवा में नाँघि दुवरिया।
थर-थर काँपै बदनवाँ, सजन आइ छावा मकनवाँ।।
कबहूँ त पनिया सँग बरसै पथरवा,
सगरो फसलिया के खपसै निगोड़वा।
सन-सन बहै पवनवाँ, सजन आइ छावा मकनवाँ।।
जब-जब चमकै बिजुरिया निगोड़ी,
तड़कै बदरवा जस ठनकै हथौड़ी।
ठन-ठन बाजे कँगनवाँ, सजन आइ छावा मकनवाँ।।
गोरुवा-बछरुवा भी तोहका बोलावैं,
चिरई-चुनमुन भी भीजि-भीजि जावैं।
सून-सून लागै अँगनवाँ, सजन आइ छावा मकनवाँ।।
तिरिया सन जड़वा ई बेधइ हियरवा,
रहि-रहि लागै जस निकसै जियरवा।
फीक-फीक लागै भोजनवाँ, सजन आइ छावा मकनवाँ।।
जइसे भी होइ सकै धाइ इहाँ आवा,
माया के नगरिया के गरे ना लगावा।
हमका न चाही गहनवाँ, सजन आइ छावा मकनवाँ।।