हरी राम यादव,स्वतंत्र लेखक अयोध्या (उत्तर प्रदेश)
वीरगति दिवस पर विशेष – (27 जुलाई)
लांसनायक प्रेम पाल
वीर चक्र (मरणोपरान्त)
हमारा पडोसी देश पाकिस्तान अपने जन्मकाल से ही ईर्ष्या वश हमारे देश भारत का दुश्मन बना बैठा है । आज़ादी के बाद से वह अब तक चार युद्ध लड़ चुका है और हर बार मुंह की खाई है लेकिन वह अपनी कुंठा को रोक नहीं पाता और आए दिन सीमा पर कुछ न कुछ हरकत करता रहता है । दोनों देशों के बीच युद्ध विराम लागू होने के बाद भी कोई न कोई उकसावे की कार्यवाही उसके द्वारा की जाती रहती है जिसका जबाब हमारी सेना देती रहती है । ऐसे ही एक उकसावे की कार्यवाही 27 जुलाई 1998 को पाकिस्तानी सेना द्वारा की गई थी जिसका मुंहतोड़ जबाब 19 गढ़वाल राइफल्स के लांसनायक प्रेम पाल ने दिया था और उस दिन उन्होंने वह साहस दिखया था जो विरले लोग ही दिखा पाते हैं ।
19 गढ़वाल राइफल्स की एक पोस्ट नियंत्रण रेखा पर हाई एल्टीट्यूड एरिया में स्थित थी। यह पोस्ट पाकिस्तानी सेना के सीधे निशाने पर थी। लांस नायक प्रेम पाल ने इस जोखिम भरी पोस्ट को व्यक्तिगत रूप से चुना । 27 जुलाई 1998 को लांस नायक प्रेम पाल जिस पोस्ट पर तैनात थे उसके पड़ोस की एक पोस्ट पर पाकिस्तानी सेना की तीन पोस्टों से भारी फायरिंग होने लगी । पड़ोसी पोस्ट पर पाकिस्तानी सेना की ओर से हो रही फायरिंग का दबाव कम करने के लिए लांस नायक प्रेम पाल ने जबाबी फायरिंग शुरू कर दी । पाकिस्तानी सेना को लगातार मुंहतोड़ जबाब देने के चलते स्वचालित ग्रेनेड लांचर का गोला बारूद घटने लगा। लांस नायक प्रेम पाल ने इसकी कमी को पूरा करने के लिए पाकिस्तानी तोपखाने की भीषण फायरिंग के बावजूद अपने बंकर से निकल पड़े। इसी बीच पाकिस्तानी गोले का एक स्पिलिंडर उनकी जांघ में आकर धंस गया । उन्होंने तुरंत प्राथमिक चिकित्सा करने के बाद फिर से गोला बारूद की आपूर्ति के लिए चले गए।
दोनों ओर से लगातार फायरिंग हो रही थी । लगभग 1345 बजे केरोसिन की रखी हुई बैरल में दुश्मन का एक गोला लग गया जिसके कारण केरोसिन की बैरल में आग लग गयी और वह आग जल्द ही गोला बारूद रखने वाले बंकर की तरफ फैलने लगी। आसन्न खतरे को भांपते हुए लांस नायक प्रेम पाल आग बुझाने के लिए खुले में दौड़ पड़े । इसी दौरान दाहिने कंधे के पास मशीन गन की गोली लग गयी लेकिन वह आग पर नियंत्रण करने के प्रयास में लगे रहे। जब वे आग बुझाकर अपने बंकर की तरफ वापस आ रहे थे तभी वह सीधे दुश्मन के तोपखाने से किए गये फायर के गोले की चपेट में आ गये। वह वहीं पर वीरगति को प्राप्त हो गये। उनकी वीरता और साहस के कारण उनके साथियों की जान और पोस्ट बच गई। लांसनायक प्रेम पाल ने प्रतिबद्धता, कर्तव्य के प्रति निस्वार्थ समर्पण और वीरता के सर्वोच्च उदाहरण का प्रदर्शन किया। उनके साहस और वीरता के लिए उन्हें 15 अगस्त 1999 को मरणोपरान्त वीर चक्र से सम्मानित किया गया।लांसनायक प्रेम पाल का जन्म 01 जनवरी 1968 को जनपद बदायूं, विकास खंड सलारपुर के गांव मई रजऊ में श्रीमती राम प्यारी देवी और श्री वीर सहाय के यहाँ हुआ था । इनकी स्कूली शिक्षा इनके गांव की प्राइमरी पाठशाला में हुई । लांसनायक प्रेम पाल 21 अप्रैल 1987 को भारतीय सेना की गढ़वाल राइफल्स में भर्ती हुए थे और प्रशिक्षण पूरा करने के पश्चात 19 गढ़वाल राइफल्स में पदस्थ हुए। इनका विवाह श्रीमती शांति देवी से हुआ। इनके परिवार में इनकी एक बेटी श्रीमती मिथिलेश कुमारी और दो पुत्र अमित कुमार और विपिन कुमार हैं । लांसनायक प्रेम पाल के बड़े पुत्र अमित कुमार वर्तमान समय में भारतीय सेना में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं ।
हमारे देश में जब कोई सैनिक वीरगति को प्राप्त होता है तो देश के जन प्रतिनिधियों और अधिकारियोँ द्वारा तमाम वादे किए जाते हैं लेकिन चिता की रख ठंढी होते ही सब भूल जाते हैं । लांसनायक प्रेम पाल का परिवार भी इसका अपवाद नहीं है । लांसनायक प्रेम पाल के साहस और वीरता को जीवंत बनाए रखने के लिए जनपद बदायूं के प्रशासन द्वारा कोई भी कदम नहीं उठाया गया है, इनके परिवार ने अपने खर्चे से गाँव की प्राइमरी पाठशाला के बगल में एक छोटे से स्थान में समाधि का निर्माण करवाया है । परिजनों का कहना है कि यदि सरकार विजय नगला से इनके गाँव को जाने वाली सड़क को बनवाकर उस पर एक शौर्य द्वार बनवा दे और सड़क का नामकरण लांसनायक प्रेम पाल के नाम पर कर दे तो मई रजऊ गाँव के लोग गर्व का अनुभव करेंगे और आसपास के गाँव के युवा इनके और साहस से वीरता प्रेरणा लेकर देश की रक्षा के लिए उन्मुख होंगें ।