डॉ. हरि नाथ मिश्र, अयोध्या, उ0प्र0।
माँ
देती है जन्म माँ ही,तुमको भी और हमको।
कर लो सफल ये जीवन, छू-छू के उस चरण को।।
देती है जन्म………….।।
सह-सह के लाख विपदा, माँ ने हमें है पाला।
रख कर स्वयं को गीला, पोषा है निज ललन को।।
देती है जन्म………….।।
माता ने है सुलाया, हर रात गा के लोरी।
माना सिया को माता, हर क्षण नमन लखन को।।
देती है जन्म…………..।।
हर जीव की विधायिका,माँ रक्षिका है पालिका।
झुकता रहे ये मस्तक, उसके ही नित नमन को।।
देती है जन्म……………।।
माँ के ही संस्कारों से, बनती है संस्कृति।
उनपर करो ही अर्पण, नित प्रेम के सुमन को।।
देती है जन्म……………।।
लक्ष्मी का रूप माँ है, दुर्गा वही सरस्वती।
सम्मान-जल से सींचो, जीवन के इस चमन को।।
देती है जन्म…………….।।
चिंतन व धर्म-कर्म की, है केंद्र-बिंदु माँ ही।
रखना सदा ही हिय में, उस ज्ञान-कोष-धन को।
देती है जन्म………….।।
कोई नहीं है जग में, माता के स्नेह जैसा।
रखना सदा सुरक्षित, शिक्षा-प्रथम सदन को।।
देती है जन्म माँ ही, तुमको भी और हमको।।