डॉ0 रामबली मिश्र, वाराणसी, उ. प्र.।
(लघु कथा)
छाया की वास्तविकता
वास्तविकता और छाया दोनों ही प्रकाश की प्रेमिकाएं हैं। प्रकाश इस कहानी का नायक है जब कि अंधकार खलनायक है। प्रकाश को देखते ही वास्तविकता और छाया का मन मचलने लगता है। दोनों ही प्रकाश से लिपट जाते हैं। वास्तविकता आगे रहती है और छाया उसके पीछे। वास्तविकता का स्वरूप स्थिर रहता है लेकिन छाया की आकृति बदलती रहती है। छाया ज्यादा नाटकीय है जबकि वास्तविकता एक सौम्य और सुशील नारी है।छाया प्रकाश को रिझाने की भरपूर कोशिश करती है किन्तु वह यह नहीं जानती कि वास्तविकता के कारण ही उसका अस्तित्व है। प्रकाश वास्तविकता को बेहद पसंद करता है।प्रकाश को देखते ही वास्तविकता चमक उठती है और प्रकाश भी प्रसन्न हो जाता है जिसे देखकर छाया असहज हो उठती है। इधर अंधकार भी ताकझाँक में लगा रहता है।वह भी वास्तविकता को पाने के लिए हमेशा लालायित रहता है। प्रकाश के थोड़ा सा भी दूर होने पर वह वास्तविकता को अपने आगोश में भर लेता है और छाया को मार डालता है-हमेशा -हमेशा के लिए खत्म कर देना चाहता है किन्तु प्रकाश को देखते ही अंधकार दूर भाग जाता है और वास्तविकता और छाया दोनों ही खिलखिला उठते हैं।
छाया की वास्तविकता तभी तक है जबतक कि प्रकाश विद्यमान है किन्तु वास्तविकता का अस्तित्व सदैव मौजूद है। हर वास्तविक वस्तु चाहे वह जिस किसी भी रूप में हो, सदैव अस्तिमान रहती है; जबकि छाया की वास्तविक पहचान आभासी है जो दिन में तो है किन्तु रात्रि में बिल्कुल नहीं। यही छाया की वास्तविकता की लघु कहानी है।