डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या, (उ0प्र0)
चौपाइयाँ(लेखनी)
कवि-हथियार लेखनी रहती।
यह तो वार खड्ग सम करती।।
कविता-लेख-कहानी द्वारा।
करे तेज नव चिंतन-धारा।।
देश-काल का चित्रण करती।
गागर में सागर को भरती।।
प्रेम-घृणा हर भाव जताए।
सदा लेखनी तथ्य बताए।।
करे लेखनी सुंदर रचना।
नव युग को यह जाने गढ़ना।।
ज्ञान-कोष को भरती रहती।
पाकर जिसे सभ्यता पलती।।
सुप्त भाव को यही जगाती।
नवल चेतना उर में लाती।।
क्रांति-शांति दोनों की दाता।
सुंदर चिंतन-भाव-विधाता।।
राम-रसायन-अमृत प्याला।
तुलसी की चौपाई वाला।।
पीकर जीवन सुखमय रहता।
प्रखर लेखनी देय अमरता।।