उस्ताद जाकिर हुसैन को श्रद्धाजंलि। 

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संजय सोंधी, उपसचिव,

भूमि एवं भवन विभाग,  नई दिल्ली। 

 

उस्ताद जाकिर हुसैन को श्रद्धाजंलि। 

               वाह उस्ताद वाह !

   उस्ताद जाकिर हुसैन की गिनती 

शास्त्रीय संगीतकारों में होती हैं जिन्हें आम श्रोता भी आसानी से पहचान लेते है। इस श्रेणी में पंडित रविशंकर और फ़िल्म संगीतकार, जोड़ी शिव-हरी भी शामिल हैं अन्यथा शास्त्रीय संगीतकारों से आम भारतीय जनता का बहुत नाता नहीं रहा हैं। उस्ताद उस्ताद जाकिर हुसैन की शख्सियत और हमेशा नए प्रयोगों के लिए उनकी तत्परता उन्हें अन्य शास्त्रीय संगीतकारों से अलग कतार में खड़ा करती हैं। जब उन्होंने अपने कैरियर आरंभ किया तब तबला एक वाद्य यंत्र के रूप में और तबला वादक एक कलाकार के रूप में अपनी एक अलग पहचान नहीं बना पाए थे। तबलावादक को तबलची की संज्ञा दी जाती थी। तबलावाचक मुख्य गायक कलाकार के पीछे बैठकर वाद्य यंत्र बजाते थे। उस्ताद जाकिर हुसैन ने तबला को एक अलग वाद्य यंत्र के रूप में स्थापित किया और तबला वादकों को संगीत कलाकारों की मुख्य श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया।

वैसे तबले के संबंध में यह गौरतलब तथ्य है कि शोध अध्ययनों के अनुसार तबले का आविष्कार 18 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में अमीर खुसरो नामक एक ढोलवादक के द्वारा हुई। जिसे एक ऐसा वाद्य यंत्र बनाने के लिए कहा गया जो स्थिर हो, आवाज़ मधुर हो तथा जिसे ख्याल नामक संगीत की नई शैली के साथ बजाया जा सके।

उस समय भारत वर्ष में मुग़ल शासक मोहम्मद शाह रंगीला का शासन था जो कि स्वयं एक बहुत अच्छे कलाकार थे। उन्होंने सितार और तबले को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उस्ताद जाकिर हुसैन के संगीत को किसी क्षेत्रीय सीमा में नहीं बांधा जा सकता, उनका संगीत विश्व संगीत था। जिसकी झलक हमें म्यूजिक बैंड, “शक्ति” के संगीत में दिखाई पड़ती है। यह म्यूजिक बैड 1973 में स्थापित हुआ था। जिसमें उस्ताद जाकिर हुसैन ने जॉन मैकलागलिन व एल. शंकर और जोर्ज हैरिसन जैसे कलाकारों के साथ मिलकर कार्य किया। उस्ताद जाकिर हुसैन ने 1990 के दशक में प्रसारित होने वाले ‘ताजमहल’ चाय के विज्ञापन में भी अपनी उपस्थिति दर्ज की और उसकी पहचान घर-घर में स्थापित हो गई। उस्ताद जाकिर हुसैन ने इस्माइल मर्चेंट की फ़िल्म “हिट एंड डस्ट” और सईं परांजपे की फ़िल्म “साज़” में अभिनय भी किया। इन फिल्मों में उन्होंने शशि कपूर और शबाना आज़मी जैसे स्थापित कलाकारों के साथ कार्य किया।

उस्ताद जाकिर हुसैन ने 5 ग्रेमी अवार्ड जीते और 7 ग्रेमी अवार्ड के लिए नामांकन हासिल किया। 2023 में भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पदम् विभूषण से सम्मानित किया गया।  इसके पूर्व उन्होंने 1988 में “पदम् श्री” व सन 2002 में पदम् भूषण से भी सम्मानित किए गए।

उस्ताद जाकिर हुसैन एक अनोखी ऊर्ज़ा से ओतप्रोत थे और 70 वर्ष से अधिक की उम्र हो जाने के बावज़ूद भी प्रतिवर्ष 150-200 कंसर्ट किया करते थे। उस्ताद जाकिर हुसैन ने नए-नए प्रयोग करने के लिए कई विदेशी संगीतकारों यथा – मिकी हार्ट, एडगर मेयर, चार्ल्स लायस हरबी हेनकाक, हिडाल्गो और बेन मोरिसन के साथ कार्य किया। वे सेन फ्रांसिस्को जेज व करोनोस क्वारटेट जैसे म्यूजिक बैंड से भी जुड़े रहे।

उस्ताद जाकिर हुसैन के द्वारा तबले के माध्यम से डमरू और शंख की सम्मिलित ध्वनि उत्पन्न करना उनकी प्रयोगशीलता और रचनात्मकता का द्योतक है। यह ‘फ्यूज़न ध्वनि’ श्रोताओं को आध्यात्मिक ऊर्ज़ा से परिपूर्ण कर एक अलौकिक दुनिया की यात्रा सहज़ ही अनुभूत करा देती है। इस प्रकार उस्ताद जाकिर हुसैन ने तबला वाद्य यंत्र को संगीत के क्षेत्र में एक नई ऊँचाई प्रदान की। जो महत्वपूर्ण कार्य पंडित रविशंकर ने सितार के माध्यम से भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक ख्याति दिलाकर किया वहीँ कार्य उस्ताद जाकिर हुसैन ने तबला के माध्यम से किया। उस्ताद जाकिर हुसैन ने जहाँ तबला को एकल वाद्य यंत्र के रूप में स्थापित किया वहीँ दूसरी और उसके साथ कई नए सफल प्रयोग भी किए। भारतीय शास्त्रीय संगीत को उनके योगदान के लिए यहीं कहा जा सकता हैं – वाह उस्ताद वाह !

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