संजय एम. तराणेकर
(कवि, लेखक व समीक्षक)
इंदौर (मध्यप्रदेश)
घरेलू विवाद और दहेज पर…
ये देखों लिख रहीं हैं एक स्त्री,
घरेलू विवाद और दहेज पर।
इन झूठे मामलों की सेज़ पर,
डाका पड़ा हैं पुरूषों जेब पर!
एटीएम दुःखी हुआ ये देखकर।
ये देखों लिख रहीं हैं एक स्त्री,
घरेलू विवाद और दहेज पर।
इस तरह होगी ये नारी सशक्त,
वैवाहिक जीवन होगा विभक्त!
क्या? धन पर ही होगी आसक्त।
ये देखों लिख रहीं हैं एक स्त्री,
घरेलू विवाद और दहेज पर।
कई टूटें अभिभावकों के रिश्ते,
पिता-बेटा इसमें जा रहें पिसते!
नहीं बचा पाते इन्हें भी फ़रिश्ते।
ये देखों लिख रहीं हैं एक स्त्री,
घरेलू विवाद और दहेज पर।
पुरुषों को आत्मसात करना।
विवादों को नेस्तनाबूत करना!
हे स्त्री, सामंजस्य बिठा लेना।