एम. तराणेकर,
तबला और “वाह उस्ताद वाह”
तबले की थाप पर खूब बनी कहानियाँ,
लो खप ही गई इसमें भी कई जवानियाँ।
हर थाप में थी भावनाओं की गहराइयाँ,
उस पर भी तो लोग बना देते थे रुबाईयाँ!
याद आ ही जाती थी उन्हें भी तनहाइयाँ।
तबले की थाप पर खूब बनी कहानियाँ,
लो खप ही गई इसमें भी कई जवानियाँ।
भई कांट्रेक्ट में बंधे हो, मत काटना बाल,
लहराते हैं इसके साथ लय और सुर ताल!
“वाह उस्ताद वाह” कहे हमेशा पूरा हॉल।
तबले की थाप पर खूब बनी कहानियाँ,
लो खप ही गई इसमें भी कई जवानियाँ।
उंगलियों और हथेलियों की यह ध्वनियाँ,
हर ताल और लय सबको करती विस्मृत!
अविश्वसनीय गति कर देती थी चमत्कृत।
तबले की थाप पर खूब बनी कहानियाँ,
लो खप ही गई इसमें भी कई जवानियाँ।
सिर्फ तबला नहीं तबले से संवाद किया,
शास्त्रीय संगीत में जैज व फ्यूजन दिया!
जाकिर हुसैन साब ये क्या कमाल किया।