संजय एम. तराणेकर
(कवि, लेखक व समीक्षक)
इंदौर (मध्यप्रदेश)
मुझे ऐसे ना भूलाया करो!
आप मुझे ऐसे ना भूलाया करो,
मैं भूलने की चीज ही नहीं हूँ।
मुझे कम-से-कम याद तो रखो,
मैं हृदय में समाने की चीज हूँ।
यार इतनी व्यस्तता अच्छी नहीं,
मैं याद करूँ आप भूल जाओ।
आप मुझे ऐसे ना भूलाया करो,
मैं भूलने की चीज ही नहीं हूँ।
ये मित्रता भी है ऐसी ही चीज,
बोए ही है हमने प्यार से बीज।
हम नहीं निकालते कोई खींज,
एक-दूजे पे जाते हैं हम रीझ।
आप मुझे ऐसे ना भूलाया करो,
मैं भूलने की चीज ही नहीं हूँ।
मित्रता तो ऐसी होनी चाहिए,
विश्वास के जैसे हो दो पहिए।
जख्म एक-दूजे के भरते रहिए,
ये दोस्ती का हाथ बढ़ाते जाइए।