गुरुदीन वर्मा (जी.आजाद)
शिक्षक एवं साहित्यकार
बारां(राजस्थान)
अजनबी हूँ मैं इस शहर में
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अजनबी हूँ मैं इस शहर में।
बेगाना हूँ मैं अपने घर में।।
मुझको यहाँ कोई नहीं जानता।
नाम क्या है मेरा, कौन हूँ मैं।।
अजनबी हूँ मैं —————-।।
अपनी धुन में, यहाँ हर कोई मस्त है।
दौलतवालों के, बहुत यहाँ दोस्त हैं।।
मुफ़लिस हूँ मैं, यहाँ घर नहीं मेरा।
अकेला हूँ , कोई दोस्त नहीं मेरा।।
बेनजर हूँ मैं, यहाँ इस नगर में।
अजनबी हूँ मैं ——————–।।
सब मानते है कि मैं, एक काफिर हूँ।
देखते हैं ऐसे, जैसे कि मैं कातिल हूँ।।
मुझको कोई वफ़ा, यहाँ नहीं मानता।
कोई मुझको अपना, यहाँ नहीं मानता।।
बेकदर हूँ मैं तो, अपने ही घर में।
अजनबी हूँ मैं ——————–।।
उसके ख्वाबों का महल, मैं बना नहीं सका।
अपनी नेकी की राह, मैं बदल नहीं सका।।
मैं अपने वतन से, वफ़ा छोड़ नहीं सका।
अपने ईमान को मैं, बेच नहीं सका।।
इसलिए दुश्मन हूँ , सबकी नजर में।
अजनबी हूँ मैं ———————–।।