
रश्मि रामेश्वर गुप्ता, बिलासपुर, छत्तीसगढ़।
नशे का राजा
जैसे – जैसे रात ढलती है,
नशे के राजा की सवारी निकलती है,
अपने पूर्ण प्रभाव के साथ।
शहर की सुनी गलियों में,
किसी शिकारी की तलाश में,
कभी नजरें उठाती, कभी नजरें झुकाती।
नशे का सम्राज्य तब बोलता नहीं चिघाड़ता है।
किसी नाजुक सी हिरणी को देखकर दहाड़ता है।
सुबह होते ही पहुंचता है किसी तरह,
लड़खड़ाते कदमों से घर की ओर,
तब तो खुद पर भी उसका कोई,
चलता नहीं जोर।
नशा उतरने पर पता ही नहीं होता उसे ,
कितने शिकार किए, कितने घायल हुए,
कितने मजबूर , कितने पागल हुए,
कितनी जिंदगियां बर्बाद की उसने,
कितने घर तबाह किए।
उतरे हुए नशे के साथ राजा आराम फरमाता है।
रात होने के पहले ही फिर से अपनी सवारी सजाता है।