
संजय एम तराणेकर
(कवि, लेखक व समीक्षक)
इन्दौर, (मध्यप्रदेश)
स्मार्टफोन-हम नहीं हैं ‘रमण‘…!
तुम्हीं से शुरू, तुम्हीं पर हैं खतम,
स्मार्टफोन की चमक होती हजम।
ये डिजिटल दुनिया का सम्मोहन,
हर कोई बना हुआ इसका मोहन।
सुख-सुविधाओं का ये हैं खजाना,
क्या? दिन-रात इसमें डूब जाना।
तुम्हीं से शुरू, तुम्हीं पर हैं खतम,
स्मार्टफोन की चमक होती हजम।
यह चकाचौंध भरी आभासी दुनिया,
गहन, खतरनाक अंधेरे में मुनिया।
ऑनलाइन सट्टेबाजी का वह जाल,
आगोश में लेकर करता बुरा हाल।
तुम्हीं से शुरू, तुम्हीं पर हैं खतम,
स्मार्टफोन की चमक होती हजम।
ये हैं विस्तार डिजिटल प्लेटफॉर्मं,
अब इसका खत्म ना होता है चार्म।
आर्थिक स्थिरता हो रही नेस्तनाबूद,
ये लाइलाज बीमारी में सब रहे कूद।
तुम्हीं से शुरू, तुम्हीं पर हैं खतम,
स्मार्टफोन की चमक होती हजम।
आओं मिलकर करें हम सब प्रयत्न,
बांध दोे एक समय करियेे ये यत्न।
करो स्वयं पर नियंत्रण ले लो प्रण,
डिजिटल युग के हम नहीं हैं ‘रमण‘।