
डॉ. सत्यवान सौरभ
हरियाणा
महावीर की सीख
ध्यान में डूबा तपस्वी, त्याग में रत प्राण,
लीन हुए जो आत्म में, वही बने भगवान।
शांति की मृदु चाल में, संयम का श्रृंगार,
उनका पावन पंथ है, जीवन का आधार।
सत्य जहाँ सौम्य स्वर हो, जहाँ न हिंसा ठहर पाए,
क्षमा जहाँ की थाती हो, तप ही जिसके साए।
धर्म, ज्ञान, वैराग्य के दीप जलाते जहाँ,
महावीर की वाणी में, मोक्ष बसा वहां।
जब गिरता अभिमान तो, जागे अंतर्मन,
निर्मल हों विचार तब, मिटे हर बंधन।
जो मानें उस महावीर को, करें सच्चा प्यार,
सहज मिले फिर जीवन में, सुख अपार-अपार।
राग-द्वेष की आग में, जो न जलाए प्राण,
सादा जीवन, उच्च सोच – उनका यही विधान।
त्यागें लोभ व मोह को, करें मन पर राज,
ऐसी साधना बनी, जगत की स्वर्ण आवाज़।
मौन थे, पर मौन में, वाणी गूंज उठी,
शब्द थे पर अर्थ में, करुणा झरने सी बही।
उनकी हर वाणी बनी, आत्मा की रागिनी,
विशेष अमृत रस लिए, दिव्य एक अग्नि।
किसी को न दुख देना, यही धर्म की रीति,
दया, करुणा और प्रेम – सबसे उत्तम नीति।
सूत्रों में संचित है, अमरत्व का मर्म,
महावीर की सीख में, बसता सत्यधर्म।
साँस-साँस में संयम हो, चित्त सदा विश्राम,
ध्यान बने आराधना, मौन बने प्रणाम।
ऐसे वीर तपस्वी को, कोटि-कोटि सम्मान,
महावीर के चरणों में, सारा जग बलिदान।
— डॉ. सत्यवान सौरभ