
डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या (उ0प्र0)
विवेकानंद (अतुकांत)
कौन कहता है कि मृत्य
मार देती है?
अरे, मृत्यु तो व्यक्ति को मारती है,
व्यक्तित्व को नहीं।
विवेकानंद नाम नहीं-
व्यक्तित्व है।
एक क्रांति है;एक सशक्त सोच है
और एक सुदृढ़ विचार
जिसने ध्वस्त कर दिया
तमाम आडंबरों को;तमाम पाखण्डों को
जिसने जकड़ रखा था
मानवीय प्रगति के आयामों को
अपनी लौह जंज़ीरों में-
एक अरसे से।
आज उसके स्मरण करने
मात्र से ही
एक अंतर्निहित ऊर्जा का
अनायास आभास होने लगता है।
और होने लगता एहसास कि
आखिर,हम हैं क्या?
अंततोगत्वा,एक अनुभूति लेती
है जन्म-
एक प्रेरणा मानो सजीव होकर
ओज प्रदान करती है-
मानव,यह नहीं-
यह है राह-जो तुम्हें पहुँचा सकती है
सम्भवतः उस विंदु पर
जहाँ पहुँचकर तुम हो सकते हो
कहलाने के हकदार-
एक स्वस्थ-अजेय मानव
जिसे मारने के पश्चात मृत्यु
स्वयं मर जाती है।
आज दिवस है एक अद्भुत शक्ति-
एक अद्भुत ऊर्जा-
सशक्त प्रेरणा के प्रतीक-
युवा चिंतक-साधक-संत-
स्वामी विवेकानंद जी का।
ऊर्जा के इस अजस्र स्रोत को
शत-शत नमन!!