
सत्यवान सौरभ,
कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,
बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा।
तेरी क्या है जात।
बाबा बोले मूत्र पिएँ, पीते श्रद्धावान।
मगर दलित का जल बने, छूते ही अपमान॥
नेत्र मूँद कर मानते, बाबा को भगवान।
तर्क बिना की आस्था, ले लेती है जान॥
ठहर जन्म से जो गया, नीचे उसका मान।
कर्म न देखा जात बस, कैसी यह पहचान॥
पढ़े-लिखे भी पूछते, तेरी क्या है जात।
ज्ञान बिना जब सोच हो, व्यर्थ लगे सब बात॥
छपते चमत्कार बहुत, बन जाते सौगात।
दलित मरे तो छप सके, दो लाइन की बात॥
वोट हेतु बस जातियाँ, गढ़ते सभी विधान।
सत्ता की यह राक्षसी, निगल रही इंसान॥
धर्म वही जो प्रेम दे, करुणा जिसका मूल।
जो बांटे पाखंड है, मानवता पर धूल॥
एक ओर चाँद चूमता, विज्ञान करे बात।
दूजी ओर दलित मरे, मंदिर से हो घात॥
विवेकशील शिक्षा बने, तर्कशील अरमान।
निकाले अंधकूप से, नवचेतन का गान॥
धर्म वही जो जोड़ दे, तोड़े ना इंसान।
जात-पात से मुक्त हो, हो सबका सम्मान॥
जाति-पांति को छोड़कर, बढ़े मनुज का मान।
आधार कर्म हो जहाँ, सौरभ सच्चा ज्ञान॥