(अंबेडकर जयंती विशेष) 

Spread the love

डा. सत्यवान सौरभ,

कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,

बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा।

 

 

(अंबेडकर जयंती विशेष) 

 

“लोकतांत्रिक भारत: हमारा कर्तव्य, हमारी जिम्मेवारी”

जनतंत्र की जान: सजग नागरिक और सतत भागीदारी

 

लोकतंत्र केवल अधिकारों का मंच नहीं, बल्कि नागरिकों के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का साझेधार भी है। भारत जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में नागरिकों की भूमिका केवल वोट देने तक सीमित नहीं होनी चाहिए। उन्हें न्याय, समानता, संवाद, स्वच्छता, कर भुगतान, और संस्थाओं के प्रति सम्मान जैसे क्षेत्रों में भी सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। लोकतंत्र की मजबूती सत्ता पर निगरानी, सूचनाओं की सत्यता, और सामाजिक सहभागिता से आती है। जब नागरिक अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाते हैं, तब लोकतंत्र केवल एक दिखावटी ढांचा रह जाता है। अतः लोकतंत्र को जीवित, सशक्त और प्रासंगिक बनाए रखने के लिए हर नागरिक को आत्मनिरीक्षण करते हुए यह पूछना होगा: “क्या मैं केवल अधिकार चाहता हूँ या जिम्मेदार भी हूँ?”

 

लोकतंत्र केवल एक व्यवस्था नहीं, एक जीवनशैली है। यह नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता और न्याय का वादा करता है, लेकिन साथ ही उनसे सजगता, जागरूकता और जिम्मेदारी की अपेक्षा भी करता है। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, पर क्या हम इसके सबसे जिम्मेदार नागरिक भी हैं? क्या हमने लोकतंत्र को केवल एक वोट देने का औज़ार मान लिया है या फिर हम इसके गहरे मूल्यों और कर्तव्यों को समझते हैं?

 

लोकतंत्र: अधिकार नहीं, दायित्व भी

 

भारतीय संविधान ने हमें कई मौलिक अधिकार दिए हैं — बोलने की आज़ादी, धर्म की स्वतंत्रता, जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार। पर संविधान ने केवल अधिकार नहीं दिए, कर्तव्यों की भी नींव रखी। 1976 में 42वें संशोधन द्वारा संविधान में 11 मौलिक कर्तव्य जोड़े गए। इनमें राष्ट्र की अखंडता की रक्षा, संविधान का सम्मान, प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना जैसे पहलू शामिल हैं।

पर विडंबना यह है कि अधिकांश नागरिक अपने अधिकारों को लेकर सजग हैं, लेकिन अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीन। सड़क पर गंदगी देखकर हम सरकार को कोसते हैं, पर खुद कचरा फेंकने से नहीं चूकते। टैक्स चोरी को ‘चालाकी’ समझते हैं, पर सरकार की नीतियों को ‘भ्रष्ट’ कहते हैं। यही वह मानसिकता है जो लोकतंत्र को खोखला करती है।

 

लोकतंत्र में नागरिक की भूमिका

 

एक स्वस्थ लोकतंत्र तभी संभव है जब उसके नागरिक सक्रिय, जागरूक और नैतिक हों। लोकतंत्र केवल चुनावों से नहीं चलता, चुनावों के बीच की जिम्मेदारियों से भी चलता है। नागरिकों को सरकार की नीतियों पर नजर रखनी चाहिए, मीडिया की सच्चाई को परखना चाहिए, और गलत को गलत कहने का साहस दिखाना चाहिए। आज जब सोशल मीडिया सूचनाओं का सबसे तेज़ माध्यम बन गया है, वहां झूठ और नफरत तेजी से फैल रही है। एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका है कि वह सूचना की सत्यता की जांच करे, नफरत की राजनीति का शिकार न बने और डिजिटल विवेक से कार्य करे।

 

न्याय, समानता और संवाद की संस्कृति

 

लोकतंत्र की बुनियाद न्याय और समानता पर टिकी होती है। लेकिन आज भी जाति, धर्म, वर्ग और भाषा के आधार पर भेदभाव जारी है। गांवों में दलितों को मंदिरों में प्रवेश से रोका जाता है, शहरों में मुस्लिमों को मकान नहीं दिया जाता, आदिवासियों की ज़मीनें छीनी जाती हैं। यह सब लोकतंत्र की आत्मा के खिलाफ है। हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह समाज में समानता और सह-अस्तित्व की संस्कृति को बढ़ावा दे। मतभेद होना लोकतंत्र का सौंदर्य है, पर मतभेद को मनभेद में बदलना उसकी कमजोरी है। संवाद, सहिष्णुता और सहमति की भावना ही लोकतंत्र को जीवंत रखती है।

 

सत्ता पर निगरानी और जवाबदेही

 

लोकतंत्र में सत्ता की असली ताकत जनता के हाथों में होती है। लेकिन अगर जनता ही अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह हो जाए, तो सत्ता बेलगाम हो जाती है। आज हमें नेताओं से सवाल पूछने की जरूरत है — उनके वादों, कार्यों और नीतियों पर। लेकिन क्या हम ऐसा करते हैं? या फिर जाति, धर्म और व्यक्तिगत स्वार्थ के आधार पर उन्हें आंख मूंदकर समर्थन देते हैं? एक लोकतांत्रिक नागरिक को न तो सत्ता से डरना चाहिए, न ही अंधभक्ति में डूबना चाहिए। जवाबदेही, पारदर्शिता और जनसुनवाई की मांग करना हर नागरिक का दायित्व है। लोकतंत्र में शासक नहीं, प्रतिनिधि होते हैं — और प्रतिनिधि को जवाब देना होता है।

 

सरकारी संस्थाओं और कानून का सम्मान

 

लोकतंत्र की नींव उसकी संस्थाओं से मजबूत होती है — न्यायपालिका, संसद, चुनाव आयोग, सूचना आयोग, और स्वतंत्र मीडिया। लेकिन जब जनता ही इन संस्थाओं के प्रति सम्मान नहीं रखती, तो उनके निर्णयों का महत्व घटने लगता है। कानून का पालन, न्यायिक फैसलों की गरिमा और चुनावी प्रक्रिया की शुचिता की रक्षा नागरिकों की जिम्मेदारी है। अगर हम खुद ही कानून तोड़ेंगे, रिश्वत देंगे, या कोर्ट के निर्णय को जातिगत चश्मे से देखेंगे, तो लोकतंत्र खोखला हो जाएगा।

 

सामाजिक भागीदारी और राष्ट्र निर्माण

 

लोकतंत्र का अर्थ केवल सरकार से अपेक्षा करना नहीं है, बल्कि खुद राष्ट्र निर्माण में योगदान देना भी है। स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों, गांवों में काम करने वाले स्वच्छता कर्मचारियों, पर्यावरण के लिए काम कर रहे युवाओं — ये सभी लोकतंत्र के सच्चे स्तंभ हैं। हर नागरिक के छोटे-छोटे प्रयास, जैसे — वोट देना, स्वच्छता में भागीदारी, महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना, या भाषाई सौहार्द बनाना — लोकतंत्र को मजबूत बनाते हैं।

 

लोकतंत्र की चुनौतियाँ और हमारी भूमिका

 

आज लोकतंत्र को कई मोर्चों पर खतरे हैं — ध्रुवीकरण और नफरत की राजनीति, जनता में बढ़ती उदासीनता, सूचना के नाम पर दुष्प्रचार, स्वतंत्र मीडिया और न्यायपालिका पर दबाव।

इन खतरों का सामना केवल संस्थाओं से नहीं, बल्कि जिम्मेदार नागरिकों से ही संभव है। जब हर व्यक्ति अपने दायित्व को समझेगा, तब ही लोकतंत्र स्वस्थ रहेगा।

 

उदाहरणों से सीखें

 

महात्मा गांधी, बाबा साहेब अंबेडकर, जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं ने लोकतंत्र को केवल राजनीतिक विचार नहीं, बल्कि नैतिक व्यवहार माना। उन्होंने सिखाया कि लोकतंत्र का अर्थ आत्म-नियंत्रण, परस्पर सम्मान और नागरिक सहभागिता है।

आज के दौर में भी अनेक नागरिक चुपचाप बदलाव की मशाल थामे हैं — शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, RTI कार्यकर्ता — जो लोकतंत्र के असली प्रहरी हैं।

 

समाप्ति: लोकतंत्र को जीवंत रखें

लोकतंत्र एक पौधे की तरह है, जिसे सिर्फ वोट की बारिश नहीं, बल्कि कर्तव्य की खाद और जिम्मेदारी की धूप भी चाहिए। अगर हम चाहते हैं कि भारत एक समावेशी, न्यायपूर्ण और प्रगतिशील राष्ट्र बने, तो हर नागरिक को आत्मनिरीक्षण करना होगा। “क्या मैं केवल अधिकार चाहता हूँ या उसके साथ अपनी जिम्मेदारी भी निभा रहा हूँ?”

 

याद रखिए,

“लोकतंत्र मंदिर है, हम उसके पुजारी;

सच्चा नागरिक वही जो निभाए जिम्मेदारी।”

  • Related Posts

    समर्पण धन्य हैं लाल 

    Spread the love

    Spread the loveडॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या (उ0प्र0)   समर्पण धन्य हैं लाल  धन्य हैं लाल वो जो वतन के लिए, मुस्कुराते हुए सर कटा के गए। मान-मर्दन किए दुश्मनों…

    पहलगाम हमला: राजनीति नहीं अब रणनीति तय करने की आवश्यकता।

    Spread the love

    Spread the loveसंदीप सृजन।     पहलगाम हमला: राजनीति नहीं अब रणनीति तय करने की आवश्यकता।   पहलगाम की बैसरन घाटी, जिसे ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ के नाम से जाना जाता है,…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    You Missed

    समर्पण धन्य हैं लाल 

    • By User
    • April 24, 2025
    • 6 views
    समर्पण  धन्य हैं लाल 

    पहलगाम हमला: राजनीति नहीं अब रणनीति तय करने की आवश्यकता।

    • By User
    • April 24, 2025
    • 4 views
    पहलगाम हमला: राजनीति नहीं अब रणनीति तय करने की आवश्यकता।

    फिरोजपुर के कस्बा ममदोट की तरफ फेंसिंग पार खेत में गेहूं काट रहे किसानों की निगरानी कर रहे बीएसएफ जवान को पाकिस्तानी रेंजर्स उठाकर ले गए।

    • By User
    • April 24, 2025
    • 6 views
    फिरोजपुर के कस्बा ममदोट की तरफ फेंसिंग पार खेत में गेहूं काट रहे किसानों की निगरानी कर रहे बीएसएफ जवान को पाकिस्तानी रेंजर्स उठाकर ले गए।

    डिजिटल रेप झेला दंश…!

    • By User
    • April 24, 2025
    • 5 views
    डिजिटल रेप झेला दंश…!

    देश की अखण्डता बनाए रखने के लिए आवश्यक है सामाजिक समरता।

    • By User
    • April 24, 2025
    • 6 views
    देश की अखण्डता बनाए रखने के लिए आवश्यक है सामाजिक समरता।

    फिरोजपुर थाना कुलगढ़ी पुलिस को मिली बड़ी कामयाबी।

    • By User
    • April 24, 2025
    • 4 views
    फिरोजपुर थाना कुलगढ़ी पुलिस को मिली बड़ी कामयाबी।