ऊखीमठः मदमहेश्वर घाटी के रासी गाँव से लगभग 39 किमी दूर चौखम्बा की तलहटी व मदानी नदी के किनारे बसा भगवती मनणामाई का तीर्थ हिमालय के शक्तिपीठों में गिना जाता है।

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ब्यूरो ऊखीमठः लक्ष्मण सिंह नेगी।

 

चैत्र नवरात्रों पर विशेषः हिमालय के आंचल में बसा मनणामाई तीर्थ।

            ऊखीमठः मदमहेश्वर घाटी के रासी गाँव से लगभग 39 किमी दूर चौखम्बा की तलहटी व मदानी नदी के किनारे बसा भगवती मनणामाई का तीर्थ हिमालय के शक्तिपीठों में गिना जाता है। भगवती मनणामाई को भेड़ पालकों की अराध्य देवी माना जाता है! भेड़ पालक समय – समय पर भगवती मनणामाई की पूजा – अर्चना कर विश्व समृद्धि की कामना करते है! मनणामाई तीर्थ में हर श्रद्धालु की मुराद पूरी होती है! रासी गाँव से प्रति वर्ष सावन माह में राकेश्वरी मन्दिर रासी से मनणामाई तीर्थ तक मनणामाई लोक जात यात्रा का आयोजन किया जाता है! केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग द्वारा यदि रासी – मनणामाई, चौमासी – मनणामाई तथा मनणामाई – खाम – केदारनाथ पैदल ट्रेको को विकसित करने की पहल की जाती है तो मदमहेश्वर घाटी व कालीमठ घाटी के पर्यटन व्यवसाय में इजाफा होने के साथ मनणामाई तीर्थ को विश्व पटल पर पहचान मिल सकती है! लोक मान्यताओं के अनुसार एक बार शिव जी एक राक्षस की तपस्या से प्रसन्न हुए तथा वरदान मांगने को कहा! राक्षस ने अमर होने का वरदान मांगा तो शिव जी ने राक्षस को वरदान दिया कि यदि तू युद्ध के समय हिमालय का स्पर्श करेगा तो अमर हो जायेगा! भगवती काली द्वारा रक्तबीज सहित कई राक्षसों का वध किया गया तो वह राक्षस हिमालय को स्पर्श करने की इच्छा से हिमालय की ओर गमन करने लगा था चौखम्बा की तलहटी में बसे बुग्यालों तक पहुँच गया! राक्षस के हिमालय गमन होने की खबर ज्यों ही भगवती मनणामाई को लगी तो मनणामाई ने उस भूभाग को अपने योगमाया से दल दल में तब्दील कर दिया तथा राक्षस दलदल में फस गया! समय रहते भगवती मनणामाई ने राक्षस का बध किया तथा जगत कल्याण के लिए चौखम्बा की तलहटी मदानी के किनारे तपस्यारत हो गयी! भगवती मनणामाई के चौखम्बा की तलहटी में तपस्यारत होने पर भेड़ पालकों द्वारा समय – समय पर पूजा – अर्चना की जाती रही तो मनणामाई भेड़ पालकों की अराध्य देवी मानी गयी! लगभग 9 बार मनणामाई तीर्थ की यात्रा कर चुके भगवती के परम उपासक भगवती प्रसाद भट्ट ने बताया कि रासी गाँव से प्रति वर्ष सावन माह में राकेश्वरी मन्दिर रासी से मनणामाई धाम तक मनणामाई लोक जात यात्रा का आयोजन किया जाता है मगर पैदल मार्ग में संसाधनों का अभाव होने के कारण लोक जात यात्रा में सिमित ग्रामीण शामिल होते है! रवीन्द्र भटट् बताते है कि मनणामाई तीर्थ में हर भक्त की मुराद पूरी होती है तथा यह तीर्थ मदानी नदी के किनारे बसा हुआ है तथा बरसात ऋतु में मनणामाई तीर्थ का भूभाग अनेक प्रजाति के पुष्पों से आच्छादित रहता है! शिव सिंह रावत, रणजीत रावत का कहना है कि मनणामाई तीर्थ में पूजा – अर्चना करने से मनौवाछित फल की प्राप्ति होती है! निवर्तमान जिला पंचायत सदस्य कालीमठ विनोद राणा, का कहना है कि यदि केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग रासी – मनणामाई व चौमासी – मनणामाई पैदल ट्रैकों को विकसित करने की कवायद करता है तो स्थानीय तीर्थाटन – पर्यटन व्यवसाय में इजाफा होने के साथ मनणामाई तीर्थ को विश्व पटल पर पहचान मिल सकती है! शंकर पंवार ने बताया कि शीला समुद्र से लेकर मनणामाई तीर्थ तक के भूभाग को प्रकृति ने अपने वैभवों का भरपूर दुलार दिया है तथा बरसात के समय इस भूभाग मेें दूर – दूर तक फैले अनेक प्रजाति के पुष्पों के बगवान प्रकृति की सुन्दरता पर चार चांद लगा देते है, उन्होंने बताया कि थौली के शिखर से चौखम्बा सहित असंख्य पर्वत श्रृंखलाओं को एक साथ दृष्टिगोचर करने से मन प्रफुल्लित हो जाता है तथा मन्द – मन्द कैलाशी बयार अति प्रिय लगती है। कैसे पहुंचे मनणामाई तीर्थ ।

ऊखीमठः देवभूमि उत्तराखंड के प्रवेश द्वार हरिद्वार से 204 किमी बस या निजी वाहन से तहसील मुख्यालय ऊखीमठ पहुंचा जा सकता है। तहसील मुख्यालय से 22 किमी दूरी बस, टैक्सी या निजी वाहन से मदमहेश्वर घाटी के रासी गाँव पहुंचने के बाद रासी गाँव से मनणामाई तीर्थ का पैदल ट्रैक शुरू होता है तथा सनियारा, पाण्डव गुफा, पटूणी थौली, द्वारी, शीला समुद्र होते हुए मनणामाई तीर्थ पहुंचा जा सकता है। कालीमठ घाटी के सीमान्त गांव चौमासी – खाम या फिर केदारनाथ – खाम होते हुए भी मनणामाई तीर्थ पहुंचा जा सकता है। मनणामाई तीर्थ पहुंचने के लिए सभी संसाधन साथ ले जाने पड़ते है तथा मनणामाई तीर्थ की यात्रा करने के लिए बरसात का समय सबसे बेहतर माना जाता है मगर बरसात के समय मन्दानी नदी के जल स्तर में भारी वृद्धि होने के कारण मन्दानी नदी को पार करना जोखिम भरा रहता है।

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