अमेरिकी टैरिफ की मार, हम हैं कितने तैयार।

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भूपेन्द्र गुप्ता।

 

अमेरिकी टैरिफ की मार, हम हैं कितने तैयार।

 

 

चुनाव जीतते समय ही अमेरिकन प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि वे रैसिप्रोकल टैरिफ उन देशों पर ठोकेंगे जिन्होंने हमारे देश पर भारी भरकम टैरिफ लगा रखे हैं। भारत को ट्रंप ने आगाह भी किया था लेकिन भारत के सही तरह नेगोशिएशन ना कर पाने के कारण अंततः 26 परसेंट रैसिप्रोकल टैरिफ ठोक दिया है । भारत पर इससे जबरदस्त प्रभाव पड़ने वाले हैं । हमारा अमरीका के लिए कुल एक्सपोर्ट लगभग 74 बिलियन डॉलर है इसमें लगभग 7 बिलियन डॉलर की कमी इन ताजा फैसलों से आ सकती है ।भारत की टेक्सटाइल इंडस्ट्री लगभग 9.6 बिलियन डॉलर, ऑटो इंडस्ट्री 2.6 बिलियन डॉलर, इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्री लगभग 14 बिलियन , जनरल आईटम 8 बिलियन तथा आभूषण 9 बिलियन डालर का ट्रेड करते हैं।

अमरीका एक मात्र देश है जहां हम निर्यात में ट्रेड सरप्लस देश हैं।लगभग 46 बिलियन डालर का हमारा ट्रेड सरप्लस है।

दस फीसदी के बेसिक टेरिफ के अलावा अमरीका ने 26 फीसदी अतिरिक्त रेसीप्रोकल यानि जैसे क़ो तैसा टैरिफ भारत पर लगा दिया है।

ट्रंप सरकार के इस फैसले से भारत के सामने मिश्रित चुनौतियां खड़ी हो गई हैं । भारत के आभूषण एवं हीरा उद्योग, वस्त्र, इलेक्ट्रानिक उद्योग, तकनीकी सेवा तथा आटो सेक्टर के कठिनाई के दिन शुरू हो सकते हैं। इन उत्पादों को प्रति स्पर्धा में टिकने के लिये कीमतें घटाना होंगीं, खर्चे घटाना होंगे, जिसका सीधा असर नौकरियों पर पड़ेगा। मांग घटने से उत्पादन घटाना होगा अन्यथा नये बाजार खोजने होंगे या देश के अंदर ही खपत बढ़ाने के उपाय करने होंगे।

डालर की कीमतों के कारण भारतीय मुद्रा वैसे भी दबाव में है जिससे आयात मूल्य बढ़ रहे हैं,इसे घरेलू खपत बढाकर अवशोषित करने की नीतियां बनानी पड़ेगी।

आपदा में अवसर की तलाश का यह एक मौका भी हो सकता है।

इस टैरिफ युद्ध में आशा की एक किरण यह है कि हमारे स्पर्धी देश चीन,वियतनाम और थाईलैंड पर हमारी तुलना में लगभग दोगुना टैरिफ लगाया गया है। अमरीका जिन वस्तुओं का इन देशों से आयात करता है सरकार उनके उत्पादन को देश में बढा़वा देकर कुछ ट्रेड छीन सकती है लेकिन यह सरकारी समर्थन के बिना संभव नहीं है। साथ ही यूरोपियन यूनियन के देशों में भी बाजार विकसित कर इस संकट को कम किया जा सकता है।

इस परिस्थिति से बाहर निकलने में ही मोदी सरकार की योग्यता और दक्षता की परीक्षा है।अगर ट्रेड तनाव को शिथिल करने में सरकार असफल होती है तो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर भी असर पड़ेगा। 2030 तक 500 बिलियन डालर के द्विपक्षीय प्रत्यक्ष निवेश लक्ष्य की पूर्ति कठिन होगी।

हमें ध्यान रखना होगा कि अमरीका का भारत से आयात हमारी जीडीपी में लगभग 2.2 फीसदी का योगदान करता है। टैरिफ घोषणा के पहले दिन ही टाटा मोटर, टीसीएस, इन्फोसिस, सोना कोमस्टार, विप्रो आदि के शेयरों में 4.5 फीसदी से अधिक की गिरावट दर्ज की गई है।

अब मोदी सरकार कसौटी पर है और व्यवहारिक निगोसिएशन,समझौते उसकी टीम की योग्यता की परख करेंगे।इन फैसलों से संभावित नुकसान से 31विलियन डालर तक हमारा जीडीपी प्रभावित हो सकता है।

भारत अमरीका से लगभग 23 बिलियन डालर का आयात करता है जिस पर लगभग 55 फीसदी टैरिफ घटाने की बातचीत चल रही है अगर यह सफल होती है तो इलेक्ट्रानिक काम्पोनैंट आदि की कीमते घटेंगी जिससे निर्यात घाटे की कुछ पूर्ति हो सकती है ।अगर समझौता टूटता है तो आयात रेवेन्यू घटने से कंपनियां घरेलू बाजार में कीमतें बढ़ायेंगी जिससे मंहगाई बढ़ेगी। छंटनी होगी।अगर हम चूकते हैं तो डूबते हैं । अब हमें देश के मानव बल को उत्पादन बढाने और नये बाजार खोजने में लगाना होगा। तभी तय होगा कि टैरिफ की मार पर भारत है तैयार।

(विनायक फीचर्स)

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