
हरीराम यादव, अयोध्या, उ. प्र.।
वीरगति दिवस:08 अप्रैल
नायक रणजीत सिंह
वीर चक्र (मरणोपरान्त)
हमारा देश सदैव शांति का पक्षधर रहा है और इसी नीति के चलते उसने अपने पडोसी देशों से भी लगातार शांतिपूर्ण व्यवहार रखा है। दुनिया में शांति कायम रखने के लिए भी उसने समय समय पर अपनी सेना को शांति सेना के रूप में भेजा है, जहाँ पर हमारी सेना ने अपने अदम्य साहस और वीरता से एक स्वर्णिम अध्याय लिखा है । इसी कड़ी में भारतीय शांति सेना द्वारा पडोसी देश श्रीलंका में जाफना को लिट्टे के कब्जे से मुक्त कराने के लिए 11 अक्टूबर 1987 को ऑपरेशन पवन शुरू किया गया । इसकी पृष्ठभूमि में हमारे देश और श्रीलंका के बीच 29 जुलाई 1987 को हुआ वह शांति समझौता था, जिसमें भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी और श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति जे0 आर0 जयवर्धने ने हस्ताक्षर किए थे। यह आपरेशन लगभग तीन वर्षों तक चला । इस आपरेशन में हमारी सेना के लगभग 30000 सैनिक शामिल थे।
अप्रैल 1989 तक भारतीय सेना ने लिट्टे के खिलाफ कई आपरेशन चलाये लेकिन संघर्ष ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा था। उत्तर प्रदेश के जनपद गोरखपुर के निवासी नायक रणजीत सिंह उस समय 5 पैरा विशेष बल में तैनात थे, 5 पैरा विशेष बल इस आपरेशन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था। इसकी उपलब्धियो को देखते हुए 08 अप्रैल 1989 को इस यूनिट को एक ऐसा ही आपरेशन चलाने की जिम्मेदारी सौंपीं गयी।
एक गिरफ्तार आतंकवादी द्वारा यह जानकारी मिली थी कि एक स्थान पर 10 कट्टरपंथियों का दल छुपा हुआ है, यह स्थान 5 पैरा विशेष बल की जिम्मेदारी वाले क्षेत्र में था। कट्टरपंथियों के इस समूह को पकड़ने के लिए एक ऑपरेशन शुरू करने का निर्णय लिया गया। सैनिकों ने योजनानुसार कार्रवाई की और संदिग्ध क्षेत्र को घेरने की प्रक्रिया शुरू कर दी । टीम ने कट्टरपंथियों के भागने के रास्तों को अवरुद्ध करने के लिए अपने सदस्यों को दो टीमों में विभाजित किया और संदिग्ध क्षेत्र को घेर लिया। अपने को घिरा हुआ जानकार कट्टरपंथियों की ओर से सैनिकों पर स्वचालित हथियारों से भयंकर गोलीबारी होने लगी और वह भागने की कोशिश करने लगे । दोनों तरफ से भीषण गोलीबारी होने लगी । नायक रणजीत सिंह ने देखा कि दो कट्टरपंथी नंबर एक टीम पर प्रभावी फायर कर रहे हैं और आगे बढ़ने में रुकावट डाल रहे हैं । नायक रंजीत सिंह ने यह महसूस किया कि समय तेजी से बीत रहा है और यदि समय रहते कट्टरपंथियों का प्रभावी सामना नहीं किया गया तो टीम की मारक क्षमता से दूर हो जाएंगे। उन्होंने दूसरी तरफ से जाकर एक कट्टरपंथी पर प्रहार किया और उसे मार गिराया। एक कट्टरपंथी को मारने के बाद उन्होंने दूसरे कट्टरपंथी को निशाने पर लिया और उसको घायल कर दिया। लेकिन वह कट्टरपंथी भागने में सफल रहा। नायक रणजीत सिंह जब तीसरे आतंकवादी को मारने के लिए आड़ से बाहर निकले, उसने उनके ऊपर फायर कर दिया और वह गोली नायक रणजीत सिंह के सीने में लगी। उनकी टीम द्वारा उन्हें तत्काल वहां के सिविल अस्पताल ले जाया गया लेकिन ज्यादा घायल होने के कारण वे वीरगति को प्राप्त हो गये।
नायक रणजीत सिंह ने इस आपरेशन में उच्चकोटि के साहस और वीरता का परिचय दिया। इस साहस औए वीरता के लिया उन्हें 26 जनवरी 1990 को मरणोपरान्त वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
नायक रणजीत सिंह का जन्म 01 जुलाई 1960 को जनपद गोरखपुर के गांव दुघरा, तहसील गोला में श्रीमती राजेश्वरी सिंह और श्री रामाशंकर सिंह के यहाँ हुआ था। उन्होंने अपनी प्राथमिक स्कूली शिक्षा अपने गाँव से और हाई स्कूल की शिक्षा श्री मोती लाल इंटर मीडिएट कालेज, दुघरा तथा इंटरमीडिएट की शिक्षा श्री राम रेखा सिंह इंटर मीडिएट कालेज ,उरुवा बाजार से पूरी की और 20 जुलाई 1978 को भारतीय सेना में भर्ती हो गए। अपना प्रशिक्षण पूरा करने के बाद वह 5 पैराशूट रेजिमेन्ट में तैनात हुए थे। नायक रणजीत सिंह के माता पिता दोनों का निधन हो चुका है, परिवार को चलने की पूरी जिम्मेदारी उनकी पत्नी श्रीमती सुमित्रा सिंह के कन्धों पर है । इनके दो बच्चे – बेटा चित्रांगद सिंह और बेटी कंचन सिंह हैं।
श्रीमती सुमित्रा सिंह ने अपने पति की यादों को अमर बनाने के लिए अपने गांव को आने वाली सड़क पर अपने पैसे से एक शौर्य द्वार का निर्माण करवाया है । सरकार या स्थानीय प्रशासन द्वारा युद्धकाल के तीसरे सबसे बड़े सम्मान से सम्मानित इस नायक के वीरता और बलिदान को याद रखने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है। स्थानीय प्रशासन और सरकार से श्रीमती सुमित्रा सिंह का कहना है कि उनके पति ने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है, यदि उनके पति के नाम पर ग्राम सभा की किसी सरकारी इमारत या गांव को आनेवाली सड़क का नामकरण कर दिया जाए तो यह उनको सच्ची श्रद्धांजलि और वर्तमान पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत होगी । उन्होंने वीरता पदकों से सम्मानित सैनिकों / आश्रितों को मिलने वाली वार्षिक राशि के सम्बन्ध में भी कहा है कि यह राशि पदकों से सम्मानित लोगों / अश्रितों को आजीवन मिलनी चाहिए ।
आपको बताते चलें की वीर चक्र श्रृंखला के वीरता पदकों से सम्मानित सैनिकों / आश्रितों को उत्तर प्रदेश सरकार से मिलने वाली वार्षिक राशि 30 साल बाद बंद कर दी जाती है जबकि अशोक चक्र श्रृंखला के पदक विजेताओं को यह राशि आजीवन मिलती है । बढ़ती उम्र के साथ बढ़ती आवश्यकताओं को देखते हुए वीर चक्र श्रृंखला के लोगों और उनके आश्रितों को यह राशि आजीवन मिलनी चाहिए।