विजय दिवस (16 दिसम्बर)

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हरी राम यादव,  सूबेदार मेजर (आनरेरी)

अयोध्या, उ. प्र.।

 

विजय दिवस (16 दिसम्बर)

16 दिसम्बर 1971 का वह दिन विश्व के सैन्य इतिहास में एक अमिट कहानी लिख रहा था जो कि अपूर्व थी, न तो पहले कभी ऐसा हुआ था और न ही भविष्य में ऐसा कुछ होने की संभावना थी । दिसम्बर की कड़ाके की ठंढ में भी देश का शीर्ष नेतृत्व राजनीतिक सरगर्मियों से व्याकुल था और यह सरगर्मी पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आ रही शरणार्थियों की भारी संख्या की समस्या को लेकर थी, जिसे हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान ने खड़ा किया था।

देश पर दिन प्रतिदिन पूर्वी पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों का दबाव बढ़ता जा रहा था। पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, मेघालय और त्रिपुरा से आये लगभग 10 लाख शरणार्थियों के कारण कानून व्यवस्था की स्थिति खराब होती जा रही थी। इससे दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध खराब होने लगे थे। पाकिस्तान इसे अपने देश का आंतरिक मामला बताकर पल्ला झाड़ रहा था लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान में जो कुछ हो रहा था उसको पाकिस्तान का अंदरूनी मामला मामला मानने से इंकार कर दिया था क्योंकि देश शरणार्थियों के रूप में इसका परिणाम भुगत रहा था। उस समय अमेरिका पाकिस्तान की तरफ आंखें बंद किए हुए उसको मूक समर्थन दे रहा था। इसे देखते हुए श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने 09 अगस्त 1971 को तत्कालीन सोवियत संघ के साथ एक समझौता किया जिसमें दोनों देशों ने एक दूसरे की सुरक्षा का भरोसा दिया था।

सन् 1970 में पाकिस्तान में आम चुनाव हुए थे। इस चुनाव में आवामी लीग को बहुमत मिला था। आवामी लीग ने बहुमत के आधार पर सरकार बनाने का दावा किया परन्तु पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता जुल्फिकार अली भुट्टो इससे सहमत नहीं थे, उन्होंने इस चुनाव का विरोध करना शुरू कर दिया। पूर्वी पाकिस्तान की जनता चुनाव में मिले बहुमत के बावजूद सत्ता हस्तांतरित न होने पर, विरोध में सड़कों पर उतर चुकी थी, जगह जगह पाकिस्तान सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन शुरु हो गया था। उभरते हुए जन आक्रोश को कुचलने के लिए सरकार ने सेना को खुली छूट दे दी। पाकिस्तान ने आम जनता पर कहर बरपाना शुरू कर दिया। अवामी लीग के नेता शेख मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया। अपने नेता की गिरफ्तारी से जनता और भड़क उठी। जगह- जगह जनता ने तत्कालीन पाकिस्तान सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया। पूर्वी पाकिस्तान में हालात खराब होते जा रहे थे। ईस्ट बंगाल रेजिमेंट, ईस्ट पाकिस्तान राइफल्स, पुलिस तथा अर्द्धसैनिक बलों के बंगाली जवानों ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ बगावत करके खुद को आजाद घोषित कर दिया। पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने पाकिस्तान से पलायन करना शुरू कर दिया। इसी समय मुक्तिवाहिनी अस्तित्व में आयी।

उस समय श्रीमती इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थी। पाकिस्तान से आये शरणार्थियों को शरण देने से पाकिस्तान ने भारत पर हमले करने की धमकियां देना शुरू कर दिया था। इस समस्या के समाधान के लिए श्रीमती इंदिरा गांधी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोशिश करनी शुरू कर दीं ताकि युद्ध जैसे हालात को टाला जा सके। पाकिस्तान की मंशा को भांपते हुए सैन्य नेतृत्व ने सेना को किसी भी हालत से निपटने के लिए एकदम तैयार रहने के लिए निर्देशित कर दिया।

03 दिसंबर को 1971 को शाम 05 बजकर 40 मिनट पर पाकिस्तानी वायु सेना ने भारतीय वायुसेना के 11 वायुसेना अड्डों – श्रीनगर, अमृतसर, पठानकोट, हलवारा, अम्बाला, फरीदकोट आगरा, जोधपुर, जामनगर, सिरसा पर हमला कर दिया। उस समय श्रीमती गांधी कलकत्ता में एक जनसभा को संबोधित कर रही थीं। वहां से तुरंत लौटकर उन्होंने एक आपातकालीन बैठक बुलाई और रात को ही ऑल इंडिया रेडियो से देश की जनता को संबोधित किया और हवाई हमलों के बारे में बताया। सरकार ने 04 दिसंबर, 1971 को युद्ध की घोषणा कर दी और सेना को ढाका की तरफ कूच करने का आदेश दे दिया।

भारतीय वायुसेना ने पश्चिमी पाकिस्तान के आयुध भंडारों और वायु सेना के अड्डों पर बम बरसाने शुरू कर दिया। भारतीय नौसेना के जांबाज नौसैनिकों ने बंगाल की खाड़ी की तरफ से पाकिस्तानी नौसेना को टक्कर देना शुरू कर दिया। भारतीय नौसेना ने 05 दिसंबर 1971 को कराची बंदरगाह पर स्थित पाकिस्तानी नौसेना के हेडक्वार्टर को नेस्तनाबूद कर दिया। हमारे नौसैनिकों ने पाकिस्तान की गाजी, खैबर, मुहाफिज जैसे युद्ध पोतों को बर्बाद कर दिया। इधर भारतीय वायुसेना के हंटर और मिग 21 फाइटर जहाजों ने राजस्थान के लोंगेवाला में एक पूरी आर्म्ड रेजिमेंट को खत्म कर दिया। इसके साथ ही साथ भारतीय वायुसेना ने पश्चिमी पाकिस्तान में दुश्मन के रेल और संचार को भी पूरी तरह बर्बाद कर दिया। इसके बाद दुश्मन के हमले पर विराम लग गया।

भारतीय सेना के जांबाज सिपाही पाकिस्तानी सेना को रौंदते हुए उसके 13,000 वर्ग मील पर कब्जा जमा लिया। इस युद्ध में सेना वायु रक्षा कोर (तब आर्टिलरी) ने भारतीय वायुसेना के साथ मिलकर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सेना वायु रक्षा कोर की एल सेवेंटी तोपें पाकिस्तान के युद्धक विमानों की काल बन गई । इस कोर ने महत्त्वपूर्ण पुलों, आयुध डिपो, हवाई अड्डो आदि की हवाई हमलों से सुरक्षा कर पैदल सेना को आगे बढ़ने में अपनी अभूतपूर्व भूमिका निभाई। भारतीय सेना के नेतृत्व कौशल और सामरिक दक्षता के कारण पाकिस्तानी सेना की एक न चली। भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान की कमर तोड़ दी। 13 दिनों तक चले युद्ध के पश्चात् बांग्लादेश अस्तित्व में आया।

यह युद्ध कई मायने में अभूतपूर्व था, यह युद्ध अब तक लड़े गये निर्णायक युद्धों में सबसे कम दिन में जीता गया युद्ध था। इससे पूर्व विश्व के सैन्य इतिहास में कभी भी इतनी बड़ी संख्या में किसी देश के सैनिकों ने आत्मसमर्पण नहीं किया था। इस युद्ध में पाकिस्तान के 93000 सैनिकों ने लेफ्टिनेंट जनरल ए ए के नियाजी के साथ भारतीय कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोरा के समक्ष आत्मसमर्पण किया था । इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना के 9000 जवान मारे गए थे और 25000 घायल हुए थे ।

यदि इस युद्ध में हम उत्तर प्रदेश के सैनिकों की भूमिका की बात करें तो इस युद्ध में हमारे प्रदेश के 496 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे और हमारे प्रदेश के वीरों को उनकी वीरता और पराक्रम के लिए 10 महावीर चक्र और 48 वीर चक्र प्रदान किए गए थे। इस युद्ध में देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के साहस, पहल, दूरदर्शिता, कूटनीति और निर्णय लेने की क्षमता ने विश्व के भूगोल और पाकिस्तान के इतिहास को बदल दिया। इस युद्ध को आखिरी अंजाम तक पहुंचाने में फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और भारतीय सेना की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण रही।

यह दिन देश के लिए गर्व का क्षण है, लेकिन जिन सैनिकों के वीरता और बलिदान के कारण यह ऐतिहासिक दिन आया इसमें से कुछ को देश की सत्ता में बैठे लोगों ने विस्मृत कर दिया है। इस युद्ध के 54 वीरों का आज तक कुछ अता पता नहीं है, यह देश के समाचार पत्रों और जागरूक सैन्य लेखकों के बीच मिसिंग 54 के नाम से जाने जाते हैं। इनके बारे में देश की संसद में बहुत बार सवाल पूछे गए और रटे रटाये जबाब दिए गए, सरकारे बदलीं लेकिन जबाब नहीं बदला। इनके परिजन आज भी इस आशा में हैं कि उनके कलेजे के टुकड़े जरुर वापस आयेंगे लेकिन हमारे देश की सरकारें और शीर्ष नेतृत्व कभी भी इनके लिए गंभीर नहीं हुआ। विजय दिवस का यह दिन इन 54 सैन्य परिवारों को हर साल एक नयी टीस और दर्द देकर जाता है।

 

 

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