चंदेरी: जहां सतीत्व और स्वाभिमान की रक्षा के लिए सोलह सौ वीरांगनाओं ने किया जौहर।

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हितानंद शर्मा।

(भारतीय जनता पार्टी मध्‍यप्रदेश के प्रदेश संगठन महामंत्री)

 

          (29 जनवरी, चंदेरी जौहर दिवस पर विशेष)

 

चंदेरी: जहां सतीत्व और स्वाभिमान की रक्षा के लिए सोलह सौ वीरांगनाओं ने किया जौहर।

 

स्‍वदेश, स्‍वाभिमान और स्‍वतंत्रता की रक्षा करने के भारतीयों के संकल्‍प और संघर्ष विश्‍व इतिहास में अनूठे हैं। किसी छोटे से कालखंड नहीं बल्कि यह हजार वर्षों के सतत संघर्ष की शौर्यगाथा है। संस्‍कृति और धर्म की रक्षा के लिए पुरुष, स्‍त्री, युवा, बच्‍चे, वृद्ध सभी के बलिदान प्रणम्‍य हैं। अपने स्‍वत्‍व, स्वाभिमान और सतीत्व की रक्षा के इस संघर्ष में स्‍त्र‍ियों ने भी सदैव त्‍याग और बलिदान का मार्ग चुना। पहले अपने परिवार के पुरुषों का संबल बन कर विजय की कामना के साथ उनके भाल पर तिलक कर युद्ध क्षेत्र में भेजा। दुर्भाग्‍य से यदि विजयश्री न मिली तो किले में ही स्‍वयं की अस्मिता की हर कीमत पर रक्षा की। भारत की महान बेटियों ने अग्नि की भस्म बन जाना स्वीकार किया लेकिन अपनी मृत देह को भी शत्रु को स्पर्श नहीं करने दिया। मध्‍यकालीन बर्बर आक्रांताओं से अपनी अस्मिता की रक्षा करने के लिए इन महान भारतीय नारियों ने जौहर के अग्निपथ पर चलने में एक क्षण की देरी भी नहीं की। जौहर की ऐतिहासिक घटनाओं के ये उदाहरण केवल भारत में ही मिलते हैं।

मध्‍यकालीन बर्बर मुगल आक्रांताओं से युद्ध में पराजय के बाद अपनी अस्मिता बचाने के लिए सिंध, ग्‍वालियर, रणथंभौर, चित्‍तौड़, चंदेरी सहित अन्‍य कई स्‍थानों पर वीरांगना नारियों ने जौहर कर अपना आत्‍मोत्‍सर्ग किया। इनमें चंदेरी का जौहर सबसे बड़ा जौहर रहा। चंदेरी वर्तमान में अशोकनगर जिले में स्थित एक नगर है। इसी चंदेरी के दुर्ग में राजपूताने की 1600 से अधिक वीरांगनाओं ने एक साथ अग्निकुंड में अग्निदाह कर मृत्‍यु को स्‍वीकार किया। मालवा की राजधानी रहे चंदेरी का मजबूत दुर्ग आज भी राजा मेदिनी राय के पराक्रम और वीरता की गाथा कहता है। इसी दुर्ग के खूनी दरवाजे में 1600 से अधिक वीरांगना नारियों के बलिदान की करुण किन्‍तु पराक्रमी कथा भी लिखी है।

496 वर्ष बीत गए हैं। यह इतिहास के उस कालखंड की राजा मेदिनी राय और रानी मणिमाला की वीरता और शौर्य के साथ करुणा से भरी गाथा है। चंदेरी में तब राजा मेदिनी राय का शासन था। उनकी रानी मणिमाला भी उन्‍हीं की तरह स्‍वाभिमानी थी। चंदेरी सामरिक, व्‍यापारिक और मालवा में प्रवेश की दृष्टि से अति महत्‍वपूर्ण था। विध्वंसक विस्तारवादी नीति के साथ आक्रांता बाबर मालवा पर अपनी कुदृष्टि डाल चुका था। वह दिसंबर 1527 में अपनी सेना लेकर चंदेरी की ओर बढ़ा। उसने इस युद्ध को जेहाद घोषित किया। 20 जनवरी 1528 को उसने राजा मेदिनी राय को एक पत्र भेजा जिसमें आत्‍मसमर्पण कर मुगल राज्‍य की अधीनता स्‍वीकार करने का प्रस्‍ताव था। बदले में शमशाबाद की जागीर देने का भी प्रस्‍ताव था। राजा मेदिनी राय स्‍वाभिमानी राजा थे, उन्‍होंने अधीनता का यह प्रस्‍ताव अस्‍वीकार कर दिया। शत्रु बिल्कुल निकट आ गया था यह देख उन्होंने युद्ध की तैयारी और तेज कर दी। मेवाड़ के राणा सांगा इसके पूर्व 16 मार्च 1527 को बाबर के विरुद्ध राजपूत शक्ति की खानवा के युद्ध में पराजय देख चुके थे, राजा मेदिनी राय भी इस युद्ध में वीरता से लड़े थे। खानवा के युद्ध के बाद राजपूत शक्ति कमजोर पड़ जाने से राणा सांगा की ओर से भी सहायता मिलना संभव नहीं हो रहा था। पराजय लगभग तय थी फि‍र भी वीर मेदिनीराय ने झुकने के स्‍थान पर युद्ध का विकल्‍प चुना। एक वीर योद्धा युद्ध लड़ कर विजय प्राप्त करने या वीरगति को प्राप्त हो जाने के लिए सदैव उन्मुख रहता है। युद्ध की घोषणा कर दी गई।

27 जनवरी को सूर्य उदय होते ही युद्ध शुरू हुआ। तीसरे दिन 29 जनवरी को भीषण और निर्णायक युद्ध हुआ। पराक्रम से लड़ते हुए राजा मेदिनीराय वीरगति को प्राप्त हुए। राजा की मृत्यु और बाबर के महल की ओर आने की सूचना जैसे ही रानी मणिमाला के पास पंहुची तो उन्‍होंने 1600 क्षत्राणियों और अपने सतीत्व की रक्षा हेतु जौहर का निर्णय लिया। महल के अंदर बनाए गए जौहर कुंड में प्रज्‍जवलित अग्नि में एक-एक कर सभी क्षत्राणियों ने समिधा के समान स्वयं की आहुति दे दी। अग्नि की लपटें कई कोस दूर तक दिखाई दे रही थी। जब यह दृश्‍य महल में आए बर्बर बाबर ने देखा तो वह भी कांप गया। उसके साथ आई उसकी चौथी बीबी दिलावर बेगम वहीं बेहोश होकर गिर गयी। इस प्रकार इन महान नारियों ने अपने स्वाभिमान और सतीत्व की रक्षा के लिए स्वयं को बलिदान कर दिया।

चंदेरी के दुर्ग में ऐतिहासिक जौहर की यह गाथा क्षत्राणियों ने अपने रक्‍त से लिखी है। यह भारत की नारियों का अपनी अस्मिता और सतीत्‍व की रक्षा के लिए किए गए आत्‍मोत्‍सर्ग का ऐसा उदाहरण है जिसकी दूसरी मिसाल विश्‍व इतिहास में नहीं मिलती। इसी जौहर की स्मृति में किले में एक स्मारक बनाया गया है और प्रतिवर्ष इन वीरांगनाओं को श्रृद्धांजलि देने आयोजन होते हैं। यह स्‍मारक इस बात का संदेश देता है कि भारतीयों ने बिना झुके अपना बलिदान देकर भी देश, धर्म, संस्‍कृति और स्‍वाभिमान को बचाए रखा। ऐसे ही अनगिनत बलिदानों की बुनियाद पर आज भारतीय समाज सुखी और स्‍वतंत्र जीवन जी रहा है। चंदेरी का यह जौहर वास्‍तव में देश के स्‍वाभिमान के लिए प्रेरणा है।

(विनायक फीचर्स)

 

 

 

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