रुद्रप्रयाग : लक्ष्मण सिंह नेगी
ऊखीमठ – 8530 फीट की ऊंचाईल पर क्रौंच पर्वत के शीर्ष पर विराजमान देव सेनापति भगवान कार्तिक स्वामी के तीर्थ में आयोजित 11 दिवसीय महायज्ञ व ज्ञान यज्ञ में प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु शामिल होकर धर्म की गंगा में डूबकी लगाकर विश्व समृद्धि व क्षेत्र की खुशहाली की कामना कर रहे हैं।
11 दिवसीय महायज्ञ व ज्ञान यज्ञ के आयोजन तथा विद्वान आचार्यों की वेद ऋचाओं से कार्तिक स्वामी तीर्थ का वातावरण भक्तिमय बना हुआ है। कार्तिक स्वामी तीर्थ जनपद रूद्रप्रयाग व चमोली जिले की दोनों सीमाओं पर विराजमान है तथा क्रौंच पर्वत तीर्थ पर भगवान कार्तिक स्वामी निर्वाण रुप में पूजे जातें हैं। कार्तिक स्वामी तीर्थ के बारे में ब्रह्म जी —- नारद जी से कहते हैं — पृथ्वी के प्रथम द्वार पर कुमार लोक है जहाँ देव सेनापति कुमार कार्तिक निवास करते है, उस तीर्थ में पग – पग पर परम आनन्द की अनुभूति होती है। कार्तिक स्वामी तीर्थ को प्रकृति ने अपने वैभवो का भरपूर दुलार दिया है। इस तीर्थ में पूजा – अर्चना के बाद भगवान कार्तिक स्वामी का भक्त व प्रकृति का रसिक जब असंख्य पर्वत श्रृखलाओ, हिमालय की चमचमाती स्वेद चादर व चौखम्बा को अति निकट से देखता है तो जीवन के दुख – दर्दों को भूलकर प्रकृति का हिस्सा बन जाता है। कार्तिक स्वामी तीर्थ के आंचल में दूर – दूर तक फैले वन सम्पदा का भूभाग क्रौंच पर्वत की सुन्दरता का चार चांद लगा देते हैं। क्रौंच पर्वत से पांच नदियों विभिन्न क्षेत्रों के लिए प्रवाहित होती है तथा लोक मान्यताओं के अनुसार क्रौंच पर्वत से निकलने वाली नील गंगा में 360 जल कुण्ड मौजूद है जिनके आचमन करने से मनुष्य के जन्म – जन्मान्तरो से लेकर युग – युगान्तरो के पापों का हरण हो जाता है। क्रौंच पर्वत तीर्थ के चारों ओर 360 गुफाये है जिनमें में समय – समय पर ऋषि – मुनि जगत कल्याण के लिए तपस्यारत रहते हैं। कार्तिक स्वामी तीर्थ में जून माह में होने वाले महायज्ञ व ज्ञान यज्ञ की परम्परा दशकों पूर्व है तथा प्रति वर्ष जून माह में होने वाले महायज्ञ व ज्ञान यज्ञ में विभिन्न क्षेत्रों के असंख्य भक्त शामिल होकर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। मन्दिर समिति के आग्रह पर प्रदेश के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज के अथक प्रयासों से कार्तिक स्वामी पर्यटन सर्किट को विकसित करने के बाद तीर्थ में श्रद्धालुओं, पर्यटकों व सैलानियों की संख्या में धीरे – धीरे इजाफा होने से स्थानीय तीर्थाटन – पर्यटन व्यवसाय में भी इजाफा होने लगा है। कार्तिक स्वामी तीर्थ के कपाट वर्ष भर खुले रहने से इस तीर्थ में 12 महीने पर्यटकों की आवाजाही होती है तथा अक्टूबर के बाद मौसम खुलने तथा क्रौंच पर्वत तीर्थ से हिमालय का दृष्य अति निकट से दृष्टिगोचर होने के कारण सर्दियों में प्रकृति प्रेमियों का आवागमन अधिक होता है। कार्तिक स्वामी मन्दिर समिति अध्यक्ष शत्रुघ्न सिंह नेगी ने बताया कि इन दिनों कार्तिक स्वामी तीर्थ में आयोजित 11 दिवसीय महायज्ञ व ज्ञान यज्ञ में प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर मनौती मांग रहे हैं तथा युगों से चली परम्परा के अनुसार महायज्ञ के लिए जौ, तिलहन सहित अनेक पूजा सामाग्री पहुंचा कर महायज्ञ में सहयोग कर रहे है। मन्दिर समिति उपाध्यक्ष बिक्रम नेगी ने बताया कि कार्तिक स्वामी तीर्थ को यातायात व रोपवे से जोड़ने के लिए सामूहिक पहल की जायेगी तथा कार्तिक स्वामी पर्यटन सर्किट से क्षेत्र के अन्य तीर्थो को जोड़ने के लिए मुख्यमंत्री व पर्यटन मंत्री से वार्ता की जायेगी।
देव सेनापति भगवान कार्तिक स्वामी की धार्मिक महत्ता।ढ ऊखीमठ – शिव पुराण कुमार खण्ड के अनुसार देव सेनापति भगवान कार्तिक स्वामी का जन्म देवताओं की स्तुति पर राक्षस राज तारकासुर के वध के लिए हुई थी। भगवान कार्तिक स्वामी के जन्म के बाद उन्होंने तारकासुर का वध कर देवताओं का भय दूर किया था! तारकासुर वध के बाद मुचुकुन्द की विनती पर सभी देवी – देवताओं ने भगवान कार्तिक स्वामी को देव सेनापति पद की पदवी पर सुशोभित किया। लम्बा समय हिमालय पर व्यतीत करने के बाद एक दिन भगवान कार्तिक स्वामी ने माता पार्वती से कहा कि मेरा मन हिमालय पर नहीं लग रहा है। भगवान कार्तिक स्वामी की वाणी सुनकर माता पार्वती ने उन्हें दक्षिण भारत जाने की सलाह दी तथा माता पार्वती की आज्ञा के अनुसार भगवान कार्तिक स्वामी दक्षिण भारत गये तथा घर – घर पूजित होने लगे। दक्षिण भारत में भगवान कार्तिक स्वामी को मुरगन, गांगेय, आगनेय सहित अनेक नामो से पूजा जाता है।
भगवान कार्तिक का निर्वाण रुप : ऊखीमठ : वेद पुराणों में वर्णित है कि एक बार सर्व प्रथम पूजित होने के लिए गणेश व कार्तिकेय में झगड़ा हो गया। जब दोनों भाईयों का झगड़ा शिव – पार्वती तक पहुंचा तो उन्होंने एक युक्ति निकाली की जो सर्व प्रथम चारों लोकों चौदह भुवनो की परिक्रमा कर हमारे पास आयेगा उसको प्रथम स्थान दिया जायेगा! माता – पिता की आज्ञा सुनकर भगवान कार्तिक स्वामी अपने वाहन मोर पर बैठकर विश्व परिक्रमा के लिए गमन कर गये, तब गणेश जी बडे़ परेशान हुए तथा उन्होंने गंगा स्नान कर शिव – पार्वती की तीन परिक्रमा कर कहा कि वेद – शास्त्रों में माता – पिता को उच्च स्थान दिया गया है इसलिए मैने विश्व परिक्रमा कर दी है। समय रहते गणेश का विश्व रूपा की पुत्री रिद्धि व सिद्धि से शादी हुई तथा शुभ और लाभ उनके दो पुत्र भी हो गये। दूसरी तरफ जब कार्तिक स्वामी विश्व परिक्रमा कर लौटे तो माता – पिता के द्वारा उनके साथ किये गये छल से वे बडे़ क्रोधित हुए तथा अपने शरीर का मांस मां पार्वती तथा खून पिता को सौपकर निर्वाण रुप लेकर क्रौंच पर्वत पहुंचे तथा जगत कल्याण के लिए तपस्यारत हो गये। देव सेनापति होने के कारण तैतीस कोटि देवी – देवता भी क्रौंच पर्वत पहुंचकर पाषाण रूप तपस्यारत हो गये। इसलिए स्कन्द नगरी से कार्तिक स्वामी तीर्थ का हर पाषाण किसी न किसी रूप में देखा जाता है तथा स्थानीय भक्तों द्वारा उन पाषाणो की पूजा युगों से की जा रही है।
कैसे पहुंचे कार्तिक स्वामी तीर्थ ऊखीमठ – देवभूमि उत्तराखंड के प्रवेशद्वार हरिद्वार से 162 किमी की दूरी बस, टैक्सी या निजी वाहन से तय करने के बाद जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग पहुंचा जा सकता है। रूद्रप्रयाग से स्व. नरेन्द्र सिंह भण्डारी मार्ग पर खरेराखाल, मयकोटी, दुर्गाधार, चोपता, खडपतियाखाल , घिमतोली, खूबसूरत हिल स्टेशनों को पार कर 36 किमी दूरी तय करने के बाद प्रकृति की सुन्दर वादियों में बसे हिल स्टेशन कनकचौरी पहुंचा जा सकता है। तथा कनकचौरी से लगभग चार किमी दूरी पैदल तय करने के बाद कार्तिक स्वामी तीर्थ पहुंचा जा सकता है। कनकचौरी – कार्तिक स्वामी पैदल मार्ग के दोनों तरफ फैली अपार वन सम्पदा से मध्य का सफर बड़ा आनन्द दायक होता है तथा इस भूभाग में विभिन्न प्रजाति के जंगली जीव – जन्तुओं की निर्भीक उछल – कूद का दृश्य बड़ा मनमोहक रहता है।