✍️डॉ मनोज रस्तोगी, मुरादाबाद, उ. प्र.।
आम आदमी की पीड़ा को उजागर किया गौरव ने।
साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से साहित्यकार स्मृतिशेष आनन्द कुमार गौरव की जयंती पर तीन दिवसीय ऑनलाइन परिचर्चा
मुरादाबादः साहित्यकार स्मृतिशेष आनन्द कुमार गौरव की जयंती पर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से तीन दिवसीय ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया । साहित्यकारों ने कहा कि वह एक बहुमुखी रचनाकार थे। उन्होंने काव्य के साथ-साथ गद्य में भी लघुकथा, कहानी व उपन्यासों की रचना की। उनकी रचनाओं में आम आदमी की पीड़ा उजागर हुई है।
मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की 27 वीं कड़ी के तहत आयोजित कार्यक्रम के संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि बिजनौर के ग्राम भगवानपुर रैहनी में 12 दिसम्बर 1958 को जन्में आनन्द कुमार गौरव की प्रथम कृति उपन्यास के रूप में आँसुओं के उस पार वर्ष 1984 में प्रकाशित हुई। इसके बाद गीत संग्रह मेरा हिन्दुस्तान कहाँ है, उपन्यास थका हारा सुख,
कविता संग्रह शून्य के मुखौटे और गीत संग्रह सांझी-सांझ प्रकाशित हुआ। एक ग़ज़ल संग्रह सुबह होने तक अभी अप्रकाशित है। उनका देहावसान 18 अप्रैल 2024 को हुआ।
परिचर्चा में ग्रेटर नोएडा के वरिष्ठ साहित्यकार मदन लाल वर्मा क्रांत ने कहा कि संवेदनशीलता के साथ-साथ उनकी रचनाओं में राष्ट्रभक्ति के स्वर भी मिलते हैं। डॉ प्रेमवती उपाध्याय का कहना था- उनके गीतों में एक ऐसी वेदना की अनुभूति होती है जो साहित्यिक सौष्ठव से ओत प्रोत है। अशोक विश्नोई ने कहा उनकी रचनाओं में आम आदमी की व्यथा और समाज से जुड़ाव मिलता है। श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा- वे मानव मन के भावों के कुशल चित्रकार थे। उनकी रचनाओं में सामाजिक विषमताओं की प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति मिलती है।
योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा उनके गीतों में जहां गीत के परंपरावादी स्वर की मिठास भरी अनुगूंज है वहीं दूसरी ओर वर्तमान का खुरदुरा अहसास भी अपनी उपस्थिति मजबूती के साथ दर्ज कराता है।
रामपुर के साहित्यकार रविप्रकाश ने कहा मन की सुकोमल भावनाओं को उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से मार्मिक अभिव्यक्ति दी। मुम्बई के साहित्यकार प्रदीप गुप्ता कहते हैं उनकी रचनाओं में गाँव से शहर तक के सफर में के भिन्न-भिन्न पड़ाव हैं। विज्ञान कथा लेखक एवं बाल साहित्यकार राजीव सक्सेना ने संस्मरण प्रस्तुत करते हुए कहा- वे वार्ता पुरुष होने की अपेक्षा कार्य पुरुष होने में अधिक विश्वास रखते थे। डॉ कृष्ण कुमार नाज ने कहा कि उन्होंने जिस तल्लीनता के साथ उपन्यासों की रचना की उतनी संवेदनशीलता के साथ गीतों की भी रचना की।
मीनाक्षी ठाकुर ने कहा उनके नवगीत न केवल भाव, शिल्प व छंद के दृष्टिकोण से उत्कृष्ट हैं अपितु परिशुद्ध हिंदी के शब्दों से सजी भाषा शैली विस्मृत करती है। उनका साहित्य प्रेम तत्व के साथ ही पाठकों को आम आदमी की पीड़ाओं से भी जोड़ता है।
राजीव प्रखर ने कहा उनके गीत अंतर्मन में पसरे मौन को मुखर अभिव्यक्ति देने की क्षमता से ओत प्रोत है। दुष्यंत बाबा ने कहा कि उनके गीतों में शब्द व्यंजना की अद्भुत समाहार शक्ति है। वह अपनी शैली के अलौकिक कवि गीतकार थे।
कार्यक्रम में मंसूर उस्मानी, सूर्यकांत द्विवेदी, उमाकांत गुप्त, विशाखा तिवारी, हरि प्रकाश शर्मा, ओंकार सिंह विवेक,अनवर कैफी, कंचन खन्ना, मनोरमा शर्मा, सुभाष रावत राहत बरेलवी, सचिन सिंह सार्थक, त्यागी अशोक कृष्णम, धन सिंह धनेंद्र, ओंकार सिंह विवेक, नकुल त्यागी, मुजाहिद चौधरी, राशिद हुसैन ने भी विचार व्यक्त किए। अन्त में प्रेरणा गौरव, विकास गौरव एवं हर्षिता गौरव ने आभार व्यक्त किया।