डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या (उ0प्र0)
बहन-भाई की प्रीति
कहे बहन की प्रीति सदा ही,
भइया रीति चलाते रहना।
परम विमल रिश्ता यह जग में-
इसको सतत निभाते रहना।।
यह संबंध बहन-भाई का,
है कृष्ण-द्रौपदी के जैसा।
किया हरण जब चीर दुशासन,
पाया न किसी ने फल वैसा।
पड़े आबरू जब संकट में-
तुम इतिहास बनाते रहना।।
इसको सतत निभाते रहना।।
यम-यमुना प्रिय भाई-बहना,
का रिश्ता शुचि-पौराणिक है।
भ्रात-बहन का रिश्ता इनका,
अमल,प्राचीन प्रामाणिक है।।
यम की भाँति सुनो हे भइया-
घर पर तुम भी आते रहना।।
इसको सतत निभाते रहना।।
ऐसे बहुत प्रमाण मिलेंगे,
भाई-बहनों के रिश्तों के।
किए त्याग हैं अद्भुत भाई,
त्याग हों जैसे फरिश्तों के।
मान सनातन कर्ज इसी को-
भइया सदा चुकाते रहना।।
इसको सतत निभाते रहना।।
यदा-कदा जब त्यौहारों पर,
नहीं मिलन भी हो पाता है।
अचरज नहीं सुनो हे भइया,
ऐसा अक्सर हो जाता है।
फिर भी कहती बहना तुमसे-
नूतन स्वप्न सजाते रहना।।
इसको सतत निभाते रहना।।
बड़े भाग्य से रिश्ते मिलते,
जीवन में भाई-बहनों के।
भ्रात-बहन ही परिवारों के,
हैं अनुपम हिस्से गहनों के।
यदि गहने की कड़ी विखंडित-
भइया तुम्हीं बनाते रहना।।
परम विमल रिश्ता यह जग में-
इसको सतत निभाते रहना।।