जो लौट के घर न आये।

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लेखक –हरी राम यादव, सूबेदार मेजर (आनरेरी)

अयोध्या, उ. प्र.।

 

जो लौट के घर न आये।

 

नायक श्याम सिंह यादव (वीरगति प्राप्त)

 

सैनिक शब्द सुनते ही मन में श्रद्धा और सम्मान का भाव जागृत हो जाता है। यह शब्द सम्भवतः एकमात्र ऐसा शब्द है जिसके साथ यह दोनों भाव जुड़े हैं। यह भाव अनायास नहीं उपजते, इनके पीछे सदियों से त्याग, बलिदान, शौर्य, पराक्रम, देश प्रेम जैसे न जाने कितने मनोभावों का एक साथ होना है। इस शब्द से मन में जो आकृति उभरती है वह आकृति एक ह्रष्ट, पुष्ट, सत्यनिष्ठा , कर्तव्यनिष्ठ और सर्वबल संंपन्न युवक की उभरती है जो रक्षा का भाव लिए होता है। उसको देखते ही मन में यह आश्वासन जगता है कि हम अब सुरक्षित हैं।

हमारे देश का सैनिक दुश्मन देश की सेना के अलावा कई अन्य मोर्चों पर भी युद्ध लड़ता है, जिसमें प्रमुख है देश की सीमाओं पर विभिन्न तरह की भौगोलिक परिस्थितियां। हमारे देश की सीमा विविधताओं से भरी हुई है कहीं पर गहरी खाइयां है तो कहीं गगनचुंबी पहाड़, कहीं पर वर्ष भर माइनस जीरो डिग्री तापमान रहता है तो कहीं पर शरीर को जला देने वाली गर्मी । युद्ध या युद्ध जैसे हालात के अलावा भौगोलिक परिस्थितियों के कारण भी हमारे देश के बहुत सारे सैनिक वीरगति को प्राप्त होते हैं। ऐसी ही एक घटना 23 दिसंबर 2022 को घटी, जिसने कई घरों के चिरागों को असमय बुझा दिया।

सन् 2022 में हमारे देश की चीन से लगती सीमा पर कुछ सरगर्मी बढ़ गयी थी। सेना की टुकड़ियों को एहतियातन सीमा चौकियों की ओर रवाना किया गया था। इसी बीच 23 दिसंबर 2022 को उत्तर सिक्किम के जेमा में एक भीषण सड़क दुर्घटना हुई , जिसमें सेना के तीन जूनियर कमीशंड अधिकारी (जेसीओ) समेत 16 अन्य रैंकों के लोग वीरगति को प्राप्त हो गये । यह दुर्घटना उस समय हुई थी जब सेना के तीन वाहनों का काफिला चत्तेन से सुबह चलकर थांगू की ओर जा रहा था। इस वाहन में कुल 20 सैनिक सवार थे। यह वाहन जेमा में एक तीखे मोड़ पर सड़क से उतर गया और सैकड़ों फीट गहरी खाई में नीचे गिर गया। इस वाहन में सेना की 25 ग्रेनेडियर रेजिमेंट के सैनिक और जनपद उन्नाव के गुलरिहा के मजरा ककरारी खेड़ा निवासी श्री सुंदरलाल यादव के बेटे नायक श्याम सिंह यादव भी सवार थे। इस वाहन दुर्घटना में नायक श्याम सिंह यादव अपने साथी सैनिकों के साथ वीरगति को प्राप्त हो गये।

नायक श्याम सिंह यादव का जन्म 17 अगस्त 1991 को उत्तर प्रदेश के जनपद उन्नाव में एक किसान परिवार में श्रीमती शांति देवी और श्री सुंदरलाल यादव के यहां हुआ था। इन्होंने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा सरस्वती विद्यालय भीतर गांव, जूनियर हाईस्कूल और हाईस्कूल की शिक्षा आनंदी विद्यालय भीतर गांव, तथा इंटरमीडिएट और स्नातक की शिक्षा बैसवारा डिग्री कालेज, लालगंज से पूरी की और 07 जून 2011 को भारतीय सेना की ग्रेनेडियर रेजिमेंट में भर्ती हो गए। ग्रेनेडियर प्रशिक्षण केन्द्र, जबलपुर से अपना प्रशिक्षण पूरा करने के पश्चात यह 25 ग्रेनेडियर रेजिमेंट में पदस्थ हुए । दुर्घटना के वक्त इनकी यूनिट सिलीगुड़ी क्षेत्र में तैनात थी। ग्रेनेडियर श्याम सिंह यादव इस हादसे से महज 15 दिन पहले 08 दिसंबर को अवकाश पूरा कर वापस अपनी यूनिट में हंसी खुशी गये थे। कौन जानता था कि यह सैनिक जीवन का उनका अंतिम अवकाश होगा। घर परिवार से लगभग रोज फोन पर संपर्क हो जाता था और परिजन कुशलता के प्रति आश्वस्त हो जाते थे।

इनके परिवार में इनके माता-पिता, इनकी पत्नी वीरांगना विनीता यादव और बेटा विवेक यादव हैं। समय के थपेड़ों से लड़ते हुए वीरांगना विनीता यादव अपने पुत्र तथा अपने परिवार के लिए एक सैनिक की भांति उठ खड़ी हुई हैं।वीरगति के समय उत्तर प्रदेश सरकार ने परिजनों को 50 लाख रुपये की अनुग्रह राशि और एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने तथा जिले की एक सड़क का नामकरण नायक श्याम सिंह यादव के नाम पर किये जाने की घोषणा की थी, जिनमें से पहली दो घोषणाएं अमल में आ चुकी हैं, लेकिन तीसरी घोषणा प्रदेश के अन्य वीरगति प्राप्त सैनिकों की तरह केवल अब तक घोषणा मात्र ही है।

हमारे देश के नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा इस तरह की घोषणाएं करना और पूरा न‌ करना वीरगति प्राप्त सैनिकों की वीरता और बलिदान का अपमान है। इस तरह की घोषणाओं को पूरा करवाने के लिए वीरगति प्राप्त सैनिकों के परिवार आये दिन हाथ में प्रार्थना पत्र लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाते रहते हैं और उनकी सुनने वाला कोई नहीं होता। सरकार को चाहिए कि या तो ऐसी घोषणाएं न करे और यदि करे तो उसको पूरा करने के लिए प्रभावी तंत्र विकसित करे और उसकी जिम्मेदारी प्रदेश के किसी एक विभाग या नामित अधिकारी को दे। प्रदेश के बहुत सारे वीरगति प्राप्त सैनिकों के परिवार इस तरह की घोषणा और अनदेखी का शिकार हैं। जनपदों में सैनिकों के कल्याण के लिए बने जिला सैनिक कल्याण कार्यालय इस तरह के कामों से अपना पल्ला झाड़ लेते हैं, यही काम इनका शीर्ष कार्यालय निदेशालय सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास भी करता रहता है। वीरगति प्राप्त सैनिकों के परिवार कभी मुख्यमंत्री कार्यालय, कभी समाज कल्याण विभाग और कभी संस्कृति विभाग का चक्कर काटते रहते हैं।

नायक श्याम सिंह के परिजनों का कहना है कि इनके गांव में यदि नायक श्याम सिंह का एक स्मारक बना दिया जाए और गांव में स्थित प्राथमिक विद्यालय का नामकरण नायक श्याम सिंह के नाम पर कर दिया जाए तो उनकी वीरगति का सम्मान होगा और उनके नाम से प्रेरणा लेकर हमारे गांव और आसपास के गांवों के युवा सेना में जाने के प्रति उत्प्रेरित होंगे।

 

 

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