अक्षिता जाँगिड़
जयपुर, राजस्थान।
कुछ बचें है लोग जहां में अभी
जो भाव अपनत्व का रखते है
सँभालते है, संवारते है सबको
अक्सर, चर्चा बुनियादी करते है
कंठ में हर पल मिठास मिलाकर
व्यवहार सब अपना सा रखते है
मिलकर देखा तब मैं समझी,
क्यों अंजान भी अपने लगते है ?
अपने-अपने का अर्थ है बदला
सब बात वो सोचकर करते है
ये स्वार्थ से मानस लिप्त भरा,
क्यों मन में द्वन्द सा रखते है ?
कुछ बचें है लोग जहां में अभी
जो भाव अपनत्व का रखते है।