इंसान ने स्वयं पहुंचाया है प्रकृति को नुकसान

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ब्यूरो: (नया अध्याय) इं. राशिद हुसैन, मुरादाबाद     (उ. प्र.)

      इंसान ने स्वयं पहुंचाया है प्रकृति को नुकसान

उफ! गर्मी, हाय गर्मी । आजकल अखबार की सुर्खियों में सबसे पहली खबर गर्मी को लेकर ही होती है। कल कितना तापमान रहा और आज कितना रहने वाला है। लोग बेहाल हैं गर्मी से बचने के लिए तरह_तरह के उपाय कर रहे हैं, लेकिन बढ़ते तापमान के मूल कारण को जानते हुए भी उसका हल निकालने की कोशिश सिर्फ बातों तक ही सीमित है।
आधुनिकीकरण की दौड़ और भौतिक सुख सुविधा पाने की चाहत में इंसान ने धीरे_धीरे प्रकृति को कितना नुकसान पहुंचाया है, इसका अंदाजा पिछले कई वर्षों से पड़ रही बेतहाशा गर्मी बता रही है। आइए मैं आपको अपने बचपन की कुछ यादों में ले चलता हूं मेरे पिताजी सरकारी कर्मचारी थे और उनकी पोस्टिंग अलग-अलग जगह पर रहती थी। मेरे बचपन का काफी समय एक गांव में बीता, जिस गांव में हम रहते थे उस गांव के कई लोग खाड़ी के देश खास कर सऊदी अरब में काम करने के लिए जाते थे। उस समय नेट/ सोशल मीडिया का जमाना नहीं था। यहां तक गांव में फोन भी नहीं होता था। खत से ही एक दूसरे की खैरियत मिला करती थी, जब वो लोग छुट्टी पर गांव आते थे तब गांव के लोग दूसरे देश की बातें बड़ी उत्सुकता से सुनते थे। सऊदी अरब में काम करने वाले बताते थे कि अरब में गर्मी बहुत होती है और दोपहर के कुछ घंटों के लिए काम से छुट्टी दे दी जाती है। खासकर भवन निर्माण कार्य करने वाले मजदूरों को। मैंने सवालिया लहजे में पूछा क्या, वहां पेड़ नहीं होते? तब वे बताते थे कि रेगिस्तानी इलाका है और पेड़ बहुत कम हैं, जो हैं भी तो छायादार नहीं हैं बारिश भी बहुत कम होती है। वहां मजदूर भी एसी कमरों में रहते हैं।हम बहुत ताज्जुब करते और ऊपर वाले का शुक्र करते कि हमारी तो पूरी गर्मी की दोपहर पेड़ों के साए में गुजर जाती है ।
अफसोस, आज ये हाल हमारे देश का हो रहा है हमने अपनी जरूरत के लिए पिछले 30 वर्षो में 668400 हेक्टेयर वन क्षेत्र खो दिया है सरकारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2020–21 में ही लगभग 31 लाख पेड़ काट दिए गए। यह वे आंकड़े हैं जो सरकारी रजिस्टर में दर्ज हैं जो दर्ज नहीं उनकी संख्या बताना मुश्किल है।भारत का पेड़ काटने में विश्व का दूसरा स्थान है जो चिंता का विषय है। बढ़ते प्रदूषण के लिए जनसंख्या वृद्धि भी एक बड़ा कारण है। इस तरह से जनसंख्या बढ़ी तो बंटवारे हुए। घर छोटे हुए और घर के आंगन में लगे पेड़ काट दिए गए। विकास की एवज में जंगल खत्म कर दिए गए।
अचानक मौसम में जब आमूल चूल परिवर्तन हुए तब संयुक्त राष्ट्र सभा में सन 1972 में एक प्रस्ताव पारित हुआ और लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए विश्व पर्यावरण दिवस मनाए जाने की बात कही गई और 5 जून 1973 को पहला पर्यावरण दिवस मनाया गया तब से लेकर आज तक प्रत्येक वर्ष 5 जून को यह दिवस मनाया जाता है।भारत में भी पर्यावरण को बचाने के लिए चिपको आंदोलन चलाया गया लेकिन पर्यावरण संरक्षण की सारी कवायदें सिर्फ एक पखवाड़े तक ही सीमित रह जाती हैं। पर्यावरण दिवस के मौके पर तमाम सरकारी अमला और गैर सरकारी स्वयं सेवी संस्थाएं एक दिन के लिए फील्ड में आते हैं और पेड़ लगाते हुए अपने फोटो खींचवा कर अपने दायित्व की इतिश्री कर लेते हैं जो पेड़ इस दिन लगाए जाते हैं फिर अगले दिन से उनकी सुध बुध लेना वाला कोई दिखाई नहीं देता कितने पेड़ पानी न मिलने की वजह से सूख जाते हैं तो कितने ही पेड़ों को आवारा जानवर अपना निवाला बना लेते हैं।
मौजूदा समय में गर्मी से सबसे ज्यादा निम्न मध्यवर्गीय या मजदूर परेशान है क्योंकि जो संपन्न हैं वो अपने घर, दफ्तर और कार में एसी लगा लेते हैं और मजदूर बेचारा तपता रहता है। आइए अब बात करते हैं एयरकंडीशनर से होने वाले वातावरण के नुकसान की। सूर्य की अत्यधिक गर्मी से बचाने के लिए सूर्य और पृथ्वी के बीच बना एक प्राकृतिक फिल्टर है जिसे ओजोन परत कहते हैं ये परत सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों को 90 से 99/ पर्सेंट तक कम कर देती है लेकिन अब इसको बड़ा नुकसान पहुंच रहा है जिसका एक कारण एसी है। एसी फ्रिज में क्लोरा फ्लोरा कार्बन या सीएफसी का इस्तेमाल होता है जिससे निकलने वाली क्लोरीन गैस ओजोन परत को बड़ा नुकसान पहुंचा रही है।जिस कारण मौसम में बड़ा बदलाव असुंतलन देखने को मिल रहा है ग्लेशियर पिघल रहे है बाढ़ आ रही हैं । जो चिंता का विषय है ।

अगर अभी न जागे तो आने वाला समय और कठिन होगा जरूरत इस बात की है की लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक किया जाए और पूरे साल इस पर ईमानदारी से काम किया जाए। अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाएं। हमें सोचना होगा अगर पर्यावरण सुरक्षित है तो जीवन सुरक्षित है।

 

 

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