सजल

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डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या (उ0प्र0)

 

सजल

समांत—एला।

मात्रा-भार–14

जीवन एक झमेला है।

सफल वही जो झेला है।।

 

जिधर देखिए भीड़ लगी।

पर,यह जीव अकेला है।।

 

अनुचित रखें न सोच कभी।

जीवन सुंदर खेला है ।।

 

परहित में रहता मन तो।

लगता रुचिकर मेला है।।

 

जीवन की क्या बात कहें?

लगता नया नवेला है।।

 

रोज तिजोरी को भरते।

जाता संग न धेला है।।

 

कहें संत बस प्रेम करो।

प्रेम-तत्व अलवेला है।।

 

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