राष्ट्रीय पुनरुत्थान की प्रेरणा देने वाला पर्व- वैशाखी।

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सुभाष आनन्द।

 

राष्ट्रीय पुनरुत्थान की प्रेरणा देने वाला पर्व- वैशाखी।

 

भारतवर्ष मेलों और त्यौहारों का देश है। इनमें से कुछ का सम्बन्ध धर्म के साथ है तो कुछ का इतिहास के साथ और कुछ का सम्बन्ध मौसम के साथ है। पंजाब में उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाने वाला जोशीला पर्व वैशाखी मूलत: एक मौसमी पर्व है। किसानों द्वारा अपने खून पसीने से तैयार की गई फसल के घर आने की खुशी से उत्साह और उमंग से यह पर्व मनाया जाता है। यह त्यौहार वीर और स्वाभिमानी पंजाबियों की भावना का भी प्रतीक है।

सिखों के दसवें गुरू गोविन्द सिंह जी ने इसी दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी जिसके कारण इस त्यौहार की महानता और गरिमा और बढ़ जाती है। यह त्यौहार भारत के स्वतत्रता संग्राम से भी जुड़ा हुआ है। इसी दिन 1919 में जालियांवाला बाग में आजादी के दीवानों पर अंग्रेजी सरकार ने प्रहार किया था।

गुरु गोविन्द सिंह जी के समय में देश की सामाजिक और राजनीतिक दशा इतनी भयानक थी कि लोगों का मनोबल पूर्ण रूप से गिर चुका था। वह विदेशी लुटेरों से अपनी बहू-बेटियों की इज्जत की रक्षा करने तक में समर्थ नहीं थे। हिन्दू बालाएं और बहू-बेटियां टके-टके के भाव से मण्डी में बेची-खरीदी जाती थी।

हिन्दू बहू, बेटियों की इज्जत सरेआम लूटी जाती थी। गुरु जी से यह दशा देखी न गई और उन्होंने निश्चय किया कि समाज में परिवर्तन लाया जाए। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए गुरुजी ने वैशाखी के दिन देश-विदेश में बसे अपने अनुयाइयों को आनन्दपुर साहिब पहुंचने का आदेश दिया। इतिहासकारों के अनुसार वहां 80 हजार से भी ज्यादा लोग पहुंचे। कीर्तन शुरू हुआ। कीर्तन के समाप्त होने पर गुरु जी ने नंगी तलवार लिए पूरे जोश से लोगों को सम्बोधित किया। प्यारी साध-संगत इस समय मानवता को बचाने के लिए सभी शांतिपूर्ण रास्ते बंद हो चुके है। मानवता को बचाने के लिए मुझे कुछ कुर्बानियों की जरुरत है। जिससे मनुष्यता की रक्षा हो सके और मानव जीवन सुरक्षित रह सके।

ज्यों ही गुरु जी ने शीश मांगे, त्यों ही लाहौर निवासी भाई दयाराम, जो जाति के क्षत्रिय थे, मंच पर शीश देने आए।

गुरु जी उसे एक तंबू में ले गए कुछ समय पश्चात रक्त रंजित तलवार लेकर मंच पर लौट आए। एक अन्य शीश की मांग की, इस बार उनकी मांग पर दिल्ली के भाई धरमदास जाट आए। गुरु जी की मांग पर तीन अन्य उड़ीसा के हिम्मतराय, द्वारिका के भाई मोहकम चन्द्र और विदर के भाई साहिबचन्द्र को गुरूजी तंबू में ले गए।

थोड़ी देर बाद गुरु जी इन पांचों को लेकर मंच पर पधारे। पंडाल में बैठे लोग इन लोगों को जिंदा देखकर हैरान हो गए। वे पांचों एक समान पोशाक धारण किए हुए थे। गुरुजी ने बांटे (लोहपात्र) में बताशों से अमृत तैयार करके पांचों को पिलाया।

जाति भेद मिटाकर उनको पांच प्यारों की संज्ञा दी। साथ ही उनको पांच ककार- केश-कंघा-कड़ा-कच्छा-कृपाण धारण करने का आदेश दिया। उन्होंने सदैव नशे से दूर रहने, केश न काटने, हलाल किया मांस न खाने, परस्त्रीगमन से बचने, मेहनत की कमाई से रोटी कमाने, मिल बांटकर खाने, सत्य-विनम्र जीवन व्यतीत करने तथा सामाजिक कार्यो के लिए अपनी कमाई का दसवां भाग देने की प्रेरणा दी।

इतिहास गवाह है कि गुरु जी की इन शिक्षाओं पर चलकर पंजाबियों ने विशाल मुगल एवं ब्रिटिश साम्राज्यों के विरुद्ध अन्याय व अत्याचार के विरुद्ध वीरता से जौहर दिखाए। यहां तक कि अपने प्राणों की आहूति दे दी लेकिन विकट परिस्थितियों में भी गुरुजी के आदेशों को नहीं छोड़ा। लेकिन आजकल कुछ नवयुवक गुरु गोविन्द सिंह जी के मार्ग पर चलने का दिखावा तो करते है, लेकिन नशे की लत में दल-दल तक फंसे हुए है। दाढ़ी केश-पगड़ी धारण करने मात्र से कोई सिख नहीं बन सकता। असली सिख वही है जो गुरु जी के दिखाए मार्ग पर चलता है। खुद कष्ट सहकर मानव समाज को सुख देता है।

13 अप्रैल 1875 को विश्व प्रसिद्ध संत स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की थी और समाज में क्रांति लाई थी। इसी दिन लाहौर पर विजय प्राप्त कर शेरे पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी ने पंजाब में सिख राज्य की नींव रखी थी।

13 अप्रैल 1749 को जनरल जस्सा सिंह ने वैशाखी के दिन खालसा दल का गठन किया था और नया नारा दिया था ‘वाहे गुरु जी का खालसा- वाहे गुरु जी की फतेह’ और 13 अप्रैल 1919 की वैशाखी का दिन आज भी चीख-चीखकर अंग्रेजों के जुल्मों की दास्तान बयान करता है। इसी दिन जालिया वाला बाग में अंग्रेजों ने क्रूर नरसंहार किया था।

वैशाखी पर्व का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि क्योंकि इस दिन संवत की भी शुरुआत होती है। कहा जाता है कि वैशाखी पर दिन और रात बराबर होते है। माना जाता है यदि वैशाखी के दिन बरसात होती है तो अगले वर्ष अच्छी फसल का शुभ संकेत होता है। वैशाखी को सूर्य वर्ष का प्रथम दिन माना जाता है, क्योंकि इसी दिन सूर्य अपनी पहली राशि मेष में प्रविष्ट होता है और इसीलिए इस दिन को मेष संक्राति भी कहा जाता है।

कौरवों के हाथ सब कुछ हारने के पश्चात पांडवों से अपने अज्ञातवास में वैशाखी के दिन ही द्रोपदी ने स्नान की इच्छा प्रगट की थी। द्रोपदी की इच्छा पूर्ति के लिए पिजौर में पांडवों ने एक धारा मंडल का निर्माण किया था। 13 अप्रैल 1763 को एक पंडित ने पंथ के सामने फरियाद की कि कसूर का नवाब उस्मान खां मेरी बेटी को जबरन उठा ले गया है। सिख पंथ में शिक्षा दी गई थी कि दूसरों की बहू-बेटियों की रक्षा करो। हरिसिंह ने अपनी खड्ग उठाई और नवाब पर हमला बोल दिया। ब्राह्मण की बेटी को मुक्त कराया।

इस प्रकार वैशाखी जहां खुशियों का त्यौहार है वहीं धार्मिक और स्वतंत्रता संग्राम की कहानियों से भी जुड़ा हुआ है।

(विभूति फीचर्स)

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