आपसी खींचतान और अपमान के कारण भाजपा ज्वॉइन कर रहे कांग्रेसी दिग्गज
क्या पार्टी खाली होने का इंतजार कर रहा है कांग्रेस आलाकमान?
विजयवर्गीय के आगे फेल हो गया कांग्रेस का मैनेजमेंट
विजया पाठक, एडिटर, जगत विजन
लोकसभा चुनाव के बीच लगातार मध्यप्रदेश कांग्रेस के लिए बुरी खबरें सामने आ रही हैं। एक तरफ जहां प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के नेतृत्व में कांग्रेस प्रदेश में बड़ी संख्या में सीटें जीतने का ख्वाब संजोए हुए बैठी है वहीं, दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के नेता एक के बाद एक कांग्रेस पार्टी के नेताओं के विकट गिराकर उन्हें अपनी टीम का सदस्य बनाने का अभियान चलाये हुए हैं। लोकसभा चुनाव के पहले से शुरू हुआ यह महाअभियान निरंतर चल रहा है। राजनीतिक सूत्रों की मानें तो कांग्रेस पार्टी के नेताओं में जीतू पटवारी को लेकर जो नाराजगी है वह अब सामने आ रही है। यही कारण है कि कई वरिष्ठ नेता कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा के खेमे में चले गये हैं। अब देखने वाली बात यह है कि कांग्रेस पार्टी अपनी आधी-अधूरी टीम के साथ कैसे भाजपा को लोकसभा चुनाव में टक्कर दे पाती है। मौजूदा समय में लोकसभा के चुनाव चरम पर है और ऐसे समय में यदि प्रदेश से दिग्गज पार्टी का दामन छोड़ेंगे तो निश्चित ही उंगली तो प्रदेश कांग्रेस पर उठेगी हीं।
*पटवारी के अंहकार और दंभ के कारण नेता छोड़ रहे हाथ का साथ*
राजनीतिक सूत्रों की मानें तो पार्टी के नेताओं में प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी की कार्यशैली को लेकर खासी नाराजगी है। हर कोई पटवारी के निर्णयों से नाराज है। खास बात यह है कि पटवारी का अडियल रवैया और दंभ-अहंकार देखिये कि एक नेता पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी ज्वॉइन करने की बात करते हैं और जीतू पटवारी उस नेता से उसकी नाराजगी पर बात करना भी आवश्यक नहीं समझते। सिर्फ जीतू पटवारी ही नहीं बल्कि कोई भी कांग्रेसी वरिष्ठ नेता इस विषय पर चर्चा करने को तैयार ही नहीं है। आखिर पार्टी के अंदर यह घमासान मचा क्यों है? आखिर नेता पार्टी छोड़कर जाने को मजबूर क्यों हो रहे हैं?
*पटवारी अपनी टीम बनाने में असफल रहे हैं*
खबरों के मुताबिक पटवारी को सीनियर और युवा नेता अपना ‘बॉस’ स्वीकार नहीं कर रहे हैं। कांग्रेस में मची भगदड़ से चिंतित पार्टी आलाकमान ने कांग्रेस की वर्तमान स्थिति पर जीतू पटवारी से रिपोर्ट मांगी है। एमपी की सियासत को समझने वाले लोगों का मानना है कि कांग्रेस की आंतरिक गुटबाजी के कारण चुनाव खत्म होने के तीन माह बाद भी पटवारी अपनी टीम बनाने में असफल रहे हैं। दरअसल, देश में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर राजनीतिक दल जोर शोर के साथ प्रचार-प्रसार में जुट गए हैं। लेकिन इन दिनों मध्य प्रदेश में सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी यानि कांग्रेस एक बड़ी चुनौती से जूझ रही है। जैसे-जैसे मतदान के दिन करीब आते जा रहे हैं, वैसे एक के बाद एक नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो रहे हैं। प्रदेश में कांग्रेस छोड़ने वाली संख्या हजारों में पहुंच चुकी है। इससे पार्टी में जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं में हाहाकार मचा हुआ है। कांग्रेस में मची भगदड़ से हाईकमान की चिंता बढ़ गई है। अब नेताओं के पार्टी छोड़ने से कमजोर होती कांग्रेस को लेकर आलाकमान सख्त नजर आ रहा है।
*कैलाश विजयवर्गीय फिर बने तारणहार*
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव के तौर पर दस सालों तक केंद्र की राजनीति में सक्रिय रहे कैलाश विजयवर्गीय ने कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय बम का नामांकन फार्म वापस करा कर दिल्ली दरबार तक यह संदेश पहुंचाया है कि वे चुनावी मैनेजेमेंट के माहिर खिलाड़ी हैं। शहर के लोग मान रहे हैं कि इंदौर में भाजपा की स्थिति वैसे ही मजबूत है। यदि बम भाजपा में नहीं आते तब भी भाजपा उम्मीदवार शंकर लालवानी को कोई बड़ी चुनौती नहीं थी, लेकिन बम की नाम वापसी के कारण इंदौर लोकसभा सीट देशभर में चर्चा का विषय बन गई। विजयवर्गीय ने अपनी कुशल रणनीति का परिचय देते हुए इंदौर सीट को आसान बना दिया है। कैलाश विजयवर्गीय ने अक्षय बम को भाजपा में लाने से पहले पूर्व कांग्रेस विधायक अंतर सिंह दरबार और पंकज संघवी की एंट्री भाजपा में कराई है। दरअसल जब विजयवर्गीय को बंगाल का प्रभारी बनाया गया था, तब वहां भी उन्होंने टीएमसी के कई बड़े नेता व विधायकों की एंट्री भाजपा में कराई थी। अब भले ही वे प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने बंगाल वाली रणनीति अपनाई है। छिंदवाड़ा सीट पर भी वे काफी सक्रिय रहे।
*जोड़ने की जगह पार्टी में टूट का कारण क्या है?*
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, पार्टी हाईकमान ने एमपी कांग्रेस के नेताओं से पार्टी छोड़ने की रिपोर्ट प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी से मांगी है। हाईकमान के लिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि कांग्रेस के नेता आखिर नाराज क्यों हैं? एक के बाद एक नेता पार्टी क्यों छोड़ रहे हैं। हाईकमान ने प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी से सख्त लहजे में पूछा है कि जोड़ने की जगह पार्टी में टूट का कारण क्या है? दरअसल, कांग्रेस के लिए चिंता की बात इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि कांग्रेस से बीजेपी की तरफ जाने वालों की इस दौड़ में पार्टी के बड़े नेता तो टूट ही रहे हैं, उनके साथ पार्टी संगठन की रीढ़ कहे जाने वाले ब्लॉक स्तर से लेकर जिला और विधानसभा स्तर तक के कार्यकर्ता भी पार्टी छोड़ रहे हैं। पिछले दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी अपने दर्जन भर समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हुए तो वहीं 19 मार्च को ही कमलनाथ के बेहद करीबी माने जाने वाले कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता सैयद जफर ने भी बीजेपी की सदयता ले ली। प्रदेश में हो रही दलबदल की राजनीति पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी का कहना है कि, पार्टी में अनुशासनहीनता के चलते जिन लोगों को हमने बाहर निकाल दिया था। वहीं लोग अब भाजपा में जा रहे हैं। उनको हमने ही बाहर निकाला और हम ही लें, ये तो नहीं कर सकते हम। अन्य नेता जो कांग्रेस छोड़कर जा रहे हैं वह अपनी लालच और डर की वजह से पार्टी छोड़ रहे हैं।
*इसलिए नाराज हैं सीनियर और युवा नेता*
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने कमलनाथ को हटाकर पूर्व मंत्री जीतू पटवारी को कमान सौंप दी। वहीं विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी भी युवा नेता उमंग सिंगार को सौंप दी। पार्टी ने दोनों युवाओं को जिम्मेदारी यह सोचकर सौंपी है कि ये दोनों नेता वरिष्ठ और युवा नेताओं के बीच समन्वय स्थापित कर पार्टी को पुनर्जीवित करेंगे किंतु उनके अध्यक्ष बनने के बाद से ही पार्टी नेताओं में अजीब सी बेचैनी दिख रही है। वरिष्ठ उन्हें अपना नेता मानने को तैयार नहीं हैं। इसके अलावा एक दिक्कत यह भी है कि पटवारी और सिंगार के समकक्ष युवा नेता भी इन दोनों को अपने बॉस के रुप में स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। इससे पार्टी में लगातार दुविधा बढ़ रही है। बड़े नेता नाराज होकर पार्टी छोड़ रहे हैं। जबकि चुनाव के दौरान युवा नेता निष्क्रिय होकर घर पर बैठे हैं। विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद पार्टी के कई नेताओं ने हार का ठीकरा कमलनाथ पर फोड़ा था। इसके बाद कांग्रेस हाईकमान ने कमलनाथ को हटाकर जीतू पटवारी को पार्टी की जिम्मेदारी सौंप दी थी। प्रदेश अध्यक्ष बदलते समय पार्टी ने मध्यप्रदेश के वरिष्ठ नेताओं से भी सलाह-मशविरा नहीं किया था। इससे प्रदेश के सभी दिग्गज नेता नाराज हो गए थे। इसी के बाद से ही नेताओं का पार्टी छोड़ने का सिलसिला शुरु हो गया है। यह बात भी सच है कि कमलनाथ के समय प्रदेश से एक भी कांग्रेस नेता ने कांग्रेस से नाता नहीं तोड़ा था बल्कि संगठन को और मजबूत किया था। संगठन मजबूत था तब ही तो प्रदेश में 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी थी।
*तीन माह से बिना टीम के काम रहे पटवारी*
विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद पूर्व सीएम कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के पद से हटाकर पिछले साल 16 दिसंबर को जीतू पटवारी एमपी के नए पीसीसी चीफ बने थे। पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर तीन माह पूरे कर चुके हैं। लेकिन अभी तक पटवारी अपनी टीम नहीं तैयार पाए हैं। सूत्रों की मानें तो वरिष्ठ नेताओं में आम सहमति बनाने के चक्कर में टीम नहीं बन पा रही है। कांग्रेस की प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी बनाने के लिए कांग्रेस के नेता एकजुट नहीं हो पा रहे हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने अपने कार्यकाल में जब प्रदेश कांग्रेस की टीम बनाई थी। तब उन्होंने 50 उपाध्यक्ष, 105 महामंत्री और करीब 60 सचिव नियुक्त किए थे। चंद्रप्रभाष शेखर को प्रदेश उपाध्यक्ष के साथ संगठन प्रभारी और राजीव सिंह को प्रशासन का प्रभारी बनाया था।
*सिंधिया से शुरू हुई थी जोड़-तोड़ की राजनीति*
मध्यप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के बीच जोड़ तोड़ की राजनीति की शुरुआत केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के लालची व्यवहार के कारण हुई थी। उन्होंने ने ही वर्ष 2018 में कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी थी। जो सिंधिया के लालची व्यवहार के कारण बीच में ही तोड़ दी गई। बावजूद उसके कमलनाथ ने अपने साथियों पर पूरा भरोसा जताया औऱ उन्हें पूरे विश्वास के साथ काम करने के लिए तैयार किया। जिसका परिणाम था कि कांग्रेस ने 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को जबरदस्त टक्कर दी।
*रामनिवास रावत ने थामा भाजपा का दामन*
इंदौर के बाद श्योपुर में कांग्रेस के दिग्गज नेता रामनिवास रावत ने भाजपा का दामन थाम लिया है। उनके साथ क्षेत्र के करीब दो हजार कार्यकर्ताओं ने भी सदस्यता ग्रहण कर ली। कांग्रेस के 06 बार से विधायक और पूर्वमंत्री रामनिवास रावत ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। गौरतलब है कि एक माह से राम निवास रावत के भाजपा में जाने की अटकलें चल रही थीं। वे कांग्रेस की नीतियों से नाराज थे। इनके साथ ही मुरैना की महापौर शारदा सोलंकी ने भी भाजपा ज्वाइन कर ली। यह घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ जब कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भिंड जिले के दौरे पर थे और पड़ोसी जिले श्योपुर में कांग्रेस के कद्दावर नेता भाजपा ज्वाइन कर रहे थे। गौरतलब है कि एक माह से राम निवास रावत के भाजपा में जाने की अटकलें चल रही थीं। रामनिवास रावत टिकट के लिए प्रयास कर रहे थे, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया। इससे वे काफी नाराज चल रहे थे।