शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’, वाराणसी, उ. प्र.।
सुमितरी! पीछे हटकर बैठ।
छत-मुँड़ेर पर
लटकाए क्यों? नीचे दोनों पैर,
सुमितरी! पीछे हटकर बैठ।
बहुत पुराना ढहा-ढहा
बाबा आदम का घर,
गिरे नहीं यह इस बारिश
में इसी बात का डर,
स्वप्नलोक की
इस धरती पर कभी न करना सैर,
सुमितरी! पीछे हटकर बैठ।
ख़बर छपी है बहा बाढ़
में रामलखन का घर,
क्रूर परिस्थिति के जैसे हों
उग आए अब पर,
डूब गया है
रामभरोसा नदी रहा था तैर,
सुमितरी! पीछे हटकर बैठ।
बात सही है, ठीक कह रहा,
समझ गई सब? सुन!
नहीं रखो अब मन में कोई
किसी तरह की धुन,
हो सकता है
कोई साधे मन में पलता बैर,
सुमितरी! पीछे हटकर बैठ।