हरियाणा में हो गया जो था होना, अब शुरू हुआ इवीएम का रोना।

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पंकज सीबी मिश्रा (प्रभारी सम्पादक)

राजनीतिक विश्लेषक, जौनपुर यूपी।

हरियाणा में हो गया जो था होना, अब शुरू हुआ इवीएम का रोना।

हरियाणा के चुनाव परिणामों ने कइयों की बोलती बंद कर दी हैं। हर उस व्यक्ति को हैरान कर दिया है जो भाजपा से चिढ़ते हैं । विश्लेषक तो खैर हैरान हैं ही, खुद उदित राज और दिपेन्द्र हुड्डा जैसे लोग भी नहीं सोच रहे थे कि उनकी गन्दी जातिवादी राजनीती पीट जाएगी। अब भाजपा की बहुमत से सरकार बन जायेगी क्योंकि 2014 में मोदी के पूरी मेजोरिटी के आने के बाद से भाजपा बहुत अच्छा कार्य कर रही। उसे यहाँ 33 प्रतिशत लगभग वोट मिले और 47 सीट पर उन्हें विजय मिली। 2019 में फिर से मोदी मेजोरिटी से आये और पुलवामा का राष्ट्रवाद सर चढ़ कर नाच रहा था ऐसा दृश्य पैदा किया गया लेकिन केंद्र के चुनाव के दो माह बाद हुए चुनाव् में भाजपा के पास 36 प्रतिशत वोट के साथ 40 सीट आई। जिस चुनाव में जाट नॉन जाट के मुद्दे को आज बड़ा मुद्दा कहा जाता है वह 2019 में इससे कहीं अधिक बड़ा था तब भी भाजपा बीस हुई । 2014 में कांग्रेस गठबंधन के पास 24 प्रतिशत वोट के साथ 19 सीट और कांग्रेस के खिलाफ माहौल था तो उसे 20 प्रतिशत लगभग वोट के साथ 15 सीट आई। 2019 में कांग्रेस के पास 28 प्रतिशत वोट के साथ 31 सीट थी। 2019 में कांग्रेस का वोट जजपा को गया और उन्हें 14 प्रतिशत वोट के साथ 10 सीट मिली। 2024 में कांग्रेस का वोट 28 प्रतिशत से बढ़कर 39 प्रतिशत हो गया जो कि सब को उम्मीद थी लेकिन भाजपा का वोट प्रतिशत 36 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया, ये किसी को उम्मीद नहीं थी। टीवी चैनल वालों को भाजपा के लिए जमीन पर वैसा कोई करंट नहीं दिखा था जैसा परिणामो में दिखाई दिया। देश भर की अन्य पार्टियों को जब खिलाफत का सामना करना पड़ता है तो वोट प्रतिशत बढ़ता नही बल्कि घटता है। लेकिन भाजपा इकलौती ऐसी पार्टी है जिस पर खिलाफत में वोट बढ़ता है। न किसान आंदोलन का असर न पहलवानी के मुद्दे का न जवान का न महंगाई का न बेरोजगारी का न पोर्टल का क्यूंकि जनता की माने तो भाजपा अच्छा कर रही। 2024 में कांग्रेस के पास 11 परसेंट वोट बढ़कर सिर्फ 5 सीट में बढ़ोतरी हुई है जबकि बीजेपी को सिर्फ 4 प्रतिशत वोट बढाकर मिले और 8 सीटें बढ़कर मिलीं। कांग्रेस और गठबंधन का वोट प्रतिशत 4 प्रतिशत रहा , उन्हें 2 सीट मिली। बसपा को 2 प्रतिशत वोट गया और जजपा को एक प्रतिशत के करीब वोट मिला, आम आदमी पार्टी ने करीब 2 प्रतिशत वोट हासिल किये। मुद्दा सिर्फ ये है कि भाजपा को बढ़कर मिले वोट के बारे में सब और विश्लेषण हो रहा है। विश्लेषण यह भी हो रहा है कि भाजपा जिस प्रकार अपने कांटे चुनाव के दौरान निकाल देती है वे इसबार भी निकाले और जहाँ-जहाँ जैसा-जैसा नेरेटिव खड़ा करना चाहती है वैसा-वैसा नेरेटिव खड़ा करने में कामयाब हुई । विनेश फोगट लगभग हारती हुई जीती हैं,। भाजपा वीनेश को जीतते देखना नही चाहती। जबकी ओलिम्पिक के बाद से ऐसा माहौल था कि विनेश कहीं से भी लड़ेगी तो भारी मतों से जीतेगी। जैसे भिवानी में किरण चौधरी के कांग्रेस से जाने का कांग्रेस को बड़ा नुक़सान हुआ। हालांकि श्रुति चौधरी की खुद की कांग्रेस में रहते सांसदी सीट 2014 और 2019 में नही बची थी। यानी भाजपा में आने से किरण चौधरी और श्रुति चौधरी को सहानुभूति मिली हो। जैसे भाजपा ने अपने तमाम गढ़ बचाये लेकिन कांग्रेस और विपक्षियों के तमाम गढ़ धराशायी किये। जैसे जाटों के एरिया में एक सीट पर तो 60 हजार के अंतर से कांग्रेस जीतती है लेकिन आसपास की सीट पर उसका कोई असर नही होता वहीं भाजपा फरीदाबाद गुणगाव, करनाल साफ कर जाती है। भाजपा जिन्हें अपने रास्ते से हटाना चाहती है उनका हिसाब चुनाव में कर देती है जैसे नारनौंद में पिछली बार कैप्टन अभिमन्यु रामकुमार गौतम से हारे। इस बार राम कुमार गौतम भी भाजपा में आ गए। यानी जाट वोट भी थे, कैप्टन का खुद का भी असर था और रामकुमार गौतम के वोट भी थे। और भाजपा का वोट भी था फिर भी कैप्टन हार गए। वहां कोई एंटी एनकाम्बेसी भी नही। वहीं रामकुमार गौतम हल्का बदलकर भी जीत गए।

जैसे उचाना से वीरेंदर सिंह को मात देनी थी क्योंकि वे भाजपा छोड़कर कांग्रेस में गए। यानी भाजपा जिसे जहां चाहे वहाँ उसी के मैदान में हरा सकती है। जैसे अटेली से किरण सिंह राव बसपा के उम्मीदवार के सामने संघर्ष करती दिखी। वहां कांग्रेस की कैंडिडेट की ज्यादा पकड़ थी। अब आप सिरसा का चुनाव देखिए। जमीन पर यदि कांग्रेस का करेन्ट देखना हो तो अभय चौटाला अच्छे मार्जिन से हारे। गोपाल कांडा भाजपा के सहयोग के बाद भी कांग्रेस से हार गए। जैसे रानिया में एक नया नवेला उम्मीदवार सिर्फ 4400 वोट से कांग्रेस और उसके सहयोगी के मजबूत प्रत्याशी से हारा। जैसे डबवाली में त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस सिर्फ 600 वोट से हारी। कमोबेश ऐसा ही अंडर करेन्ट पूरे प्रदेश में था। और एंटीएनकाम्बेसी फेक्टर के चलते भाजपा के वोट गिरने थे। लेकिन मोदी है तो मुमकिन है का नारा हरियाणा में साकार हुआ है । कांग्रेस को चुनाव लड़ने की तमाम प्रक्रिया का अवलोकन करना चाहिए। जैसे मध्यप्रदेश में 44 प्रतिशत वोट लेकर भाजपा जीती लेकिन जमीन पर 44 प्रतिशत वाला कोई माहौल नही दिखता था वैसा ही भाजपा के पक्ष में जमीन पर 40 पेरसेंट वाला माहौल दिखाई नहीं दे रहा था। 39 पेरसेन्ट वाली कांग्रेस का माहौल यदि सब और दिखता था तो 40 पेरसेंट वाली भाजपा का माहौल परिदृश्य से नदारद क्यो था! चुनाव का बूथ लेवल पर निरीक्षण करके औंर बेहतर तथ्य सामने आएंगे। अब इवीएम का रोना क्यों जब भाजपा अच्छा कर रही।

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