कुल की लाज।

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ब्यूरो छत्तीसगढ़ः सुनील चिंचोलकर।

       

                कुल की लाज।

रश्मि रामेश्वर गुप्ता, बिलासपुर छत्तीसगढ़।

मिनी ने रास्ते में ही सोच लिया था कि जब वो मायके में कदम रखेगी तो सभी की निगाहें उसके ऊपर ही टिकी होगी और उसके हर शब्द पर गौर किया जाएगा। मिनी बहुत ही सम्हल गई क्योकि वो नही चाहती थी कि उनके मायके वाले उनके ससुराल को बुरा कहे। वो अपनी सासू मां के प्यार को अपमानित होते कैसे देख सकती थी ?

बेटी का जीवन भी कितना विचित्र होता है। बेटी तो मायके और ससुराल के बीच की कड़ी होती है।

जब ससुराल में उसके मायके को बुरा कहा जाता है तो उसे जितना दुख होता है उतना ही दुख उसे तब भी होता है जब उसके मायके में ससुराल को बुरा कहा जाता है और मिनी ने सोच लिया था कि वो कोई भी ऐसी बात नही कहेगी जिससे उसके ससुराल को लोग बुरा कहे।

सारी बाते सोचते – सोचते रास्ते का पता ही नही चला। भैया साथ में चाचाजी के बेटे और बड़े पापा के बेटे को भी ले कर गए थे मिनी को लाने। मिनी तीनो भाइयों के साथ बातें करते हँसते – हँसाते घर पहुँच गई। मिनी बहुत ही शीघ्रता से मायके के द्वार पर चढ़ी और लपकी उस कमरे की ओर जहाँ चाचीजी, बड़ी मम्मी ,दीदी ,माँ सभी बड़ी बेसब्री से मिनी का इंतेज़ार कर रहे थे।

मिनी का हँसता मुस्कुराता चेहरा देखकर सबको एकबारगी समझ आ गया कि ससुराल में सब ठीक है। फिर भी मिनी से पूछा गया कि वहां किसी ने कुछ कहा तो नही? मिनी ने कहा- “नही उसे तो इतने प्यार से रखे इतने दिन। उसकी हर सुख-सुविधा का बारीकी से ध्यान रखा गया।” एक भैया जो बड़े दूर से आये थे मिनी से मिलने, उन्होंने पूछा- “मिनी! तुम तो बिल्कुल पीली-पीली नज़र आ रही हो। ऐसा लगता है जैसे तुम कभी धूप में नही निकली?”

मिनी ने कहा- “जी भैया! वहाँ बहुत ज्यादा पर्दा प्रथा है। दिन भर घूंघट में रहना पड़ता है और घर में सबसे छोटी बहू होने के कारण आँगन में भी नही बैठ सकते इसलिए सही में इतने दिन से धूप में नही रही मैं।” और इतना कहकर मिनी हंस दी। उसके साथ-साथ सभी हँसने लगे।

उस समय पूरा मोहल्ला मिनी का ही परिवार था। दादा जी लोग सात भाई होते थे। मिनी के दादाजी छठवें नंबर के थे। मोहल्ले से जितने भी लोग मिनी से मिलने आये थे सभी संतुष्ट होकर अपने -अपने घर चले गए। मिनी जितने दिन भी वहाँ रही, सभी मिनी से अपने-अपने तरीके से पूछते रहे । मिनी ने सभी से यही कहा कि उसे वहाँ किसी प्रकार की कोई तकलीफ नही हुई।

मिनी ने देखा कि मां ने एक कमरे में मिनी के दहेज़ के सारे सामान को हिफाज़त से रखकर कमरे में ताला डाल दिया है क्योंकि एक बार जो सामान बेटी के नाम से निकाल दिया जाता है या दहेज़ के रूप में संकल्प करके जिस सामान पर पीला चांवल डाल दिया जाता है उस सामान को फिर बेटी को न देकर मायके वाले उपयोग करे तो वो पाप की श्रेणी में आ जाता है इसलिए माँ ने उसमे से किसी भी सामान का उपयोग नही किया था।

कुछ दिन वहाँ रहने के बाद मिनी माँ को लेकर उस गांव में चली गई जहाँ उसका जॉब था। वहाँ भी वही सवाल क्योकि उस गांव के भी बहुत से बड़े बुजुर्ग एवं विद्यालय के सभी सदस्य मिनी की शादी में आये थे और स्नेहवश मिनी की विदाई के पश्चात ही घर लौटे थे। वो भी उस घटना से बड़े आहत थे और मिनी के आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। क्यों न हो , उस गांव के सभी लोग मिनी को बेटी ही मानते थे। मिनी का भी सभी से वैसा ही लगाव था। जब सारे लोग शादी में आये तो मिनी इतनी खुश हुई थी कि हल्दी चढ़ने के बाद भी मिनी ने सभी को स्वयं अपने हाथो से परोस कर खाना खिलाया था। ये एक स्नेह की डोरी ही तो होती है जो सबको बांधे रखती है। मिनी ने वहाँ भी सभी को अपनी बातों से संतुष्ट किया । सभी ने राहत की सांस ली।……..क्रमशः

 

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