हरी राम यादव, अयोध्या, उत्तर प्रदेश
हे राम उठाओ तुम अब धनुष बान
हे राम उठाओ तुम अब धनुष बान,
प्रत्यंचा को दो अब एकदम तान ।
अवध पाल तुम सत्य के शोधक हो ,
तुम न्याय व्यवस्था के उदबोधक हो ।
नाम तुम्हारे अगणित उपमाएं गढ़ी गई,
न जाने कितने कविताएं पढ़ी गईं।
चरित्र तुम्हारा रहा जैसे धवल कमल,
आजीवन आदर्श तुम्हारा नीर विमल।
आक्षेप लगा जब जनता से तुम पर,
तुमने स्वयं को न समझा जन से ऊपर।
निज पत्नी से दिलवाई अग्नि परीक्षा,
पर सर्वोपरि रखी जनमानस की इच्छा।
ऐसे स्थापित की शासन की परिभाषा,
जिसकी आज भी की जाती है आशा।
आड़ तुम्हारे कितने प्रपंच गढ़े जा रहे,
स्वहित आपके कसीदे पढ़े जा रहे।
राम तुम तो घट घट में व्यापी हो,
तुम अन्तर्यामी पुन्य प्रतापी हो।
सत्य असत्य छुपा नहीं है तुमसे,
तुम असत्य पर शीघ्र संधान करो ।
रघुनंदन जो धोखेबाज और प्रलापी है,
उनको शीध्र बुद्धि का दान करो।।