हरी राम यादव, सूबेदार मेजर (आनरेरी)
कारगिल के मैदान से आंखों देखी
कारगिल में वायु रक्षा की हीरो – वन थ्री जीरो।
युद्ध की रणभेरी बज चुकी थी जिसकी गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ रही थी। कारगिल द्रास सेक्टर में माइनस 40 डिग्री के तापमान में पहाडियों पर तोपों की आवाज देश के हर कोने में गूंज रही थी और गोलों से निकलने वाली तपिश को प्रत्येक देशवासी महसूस कर रहा था। देश के कोने कोने से सामरिक संरचना के अनुसार सेना की टुकड़ियों को देश की पश्चिमी और उत्तरी सीमा पर गाडियों और रेल गाडियों से लाया जा रहा था। सैनिकों के परिजन दूर संचार माध्यमों पर ऑंख और कान लगाए पल पल की खबर से अवगत हो रहे थे। देश में कहीं न कहीं रोज सैनिकों के वीरगति प्राप्त होने की खबरें आ रही थीं। ठीक इसी समय सूरतगढ़ छावनी में तैनात सेना वायु रक्षा कोर की यूनिट 130 वायु रक्षा रेजिमेंट भविष्य की आशंकाओं के बीच अपनी सामरिक तैयारी में लगी हुई थी। इस यूनिट का एक रडार और दो सेक्शन जैसलमेर में कैप्टन सुमित कोचर की कमान में सीमा की निगरानी के लिए जा चुके थे, लेकिन यूनिट के बाकी दस्तों के युद्ध में जाने या न जाने के बारे में किसी को कोई खबर नहीं थी। तीनों सेना मुख्यालयों में युद्ध के हालात और अगली रणनीति पर विचार करने के लिए बैठकों का दौर जारी था।
यूनिट के पूर्व इतिहास और क्षमता को देखते हुए डायरेक्टर जनरल आफ एयर डिफेंस आर्टिलरी ने 130 वायु रक्षा रेजिमेंट को ऑपरेशन विजय में भेजने का निर्णय लिया। 17 जून 1999 को सेना मुख्यालय से भेजा गया एक सन्देश यूनिट के कमान अधिकारी कर्नल अजित विनायक पालेकर को मिला, जिसमे यूनिट को 48 घंटे के भीतर अपने दल बल के साथ युद्ध के मैदान में जाने का आदेश लिखा हुआ था। यूनिट के लिए यह खबर काफी महत्वपूर्ण और उत्साहवर्धक भी थी क्योंकि एक सैनिक अपने जीवन भर इसी बात का इन्तजार करता है कि उसे दुश्मन से दो दो हाथ करने का मौका कब मिलेगा ? कुछ देर में ही यह खबर यूनिट के अधिकारियों और सूबेदार मेजर घिर्राऊ यादव से होती हुई निचले स्तर तक पहुँच गई और लोग अपने अपने जवानों के साथ युद्ध के मैदान में जाने की तैयारी में जिम्मेदारी के साथ लग गए। सूबेदार मोहिंदर सिंह राना और सूबेदार प्रेम सिंह अपने अधीनस्थ क्लर्कों के साथ यूनिट की आपरेशनल कागजी कार्यवाही में जुट गये। 19 और 20 जून को यूनिट चार समूहों में स्पेशल सैनिक ट्रेन से अपने गंतव्य की ओर यूनिट के जयघोष “दुर्गे माता की जय” के गगनभेदी नारे से सूरतगढ़ की धरती को गुंजायमान करते हुए यूनिट के आधार की कमान लेफ्टिनेंट अजामिलन आर को सौंपकर चल पड़ी
जम्मू के ब्राह्मण बाड़ी रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से उतरकर रात्रि विश्राम के पश्चात यूनिट अपनी गाड़ियों के काफिले के साथ सड़क मार्ग से ऊधमपुर के लिये रवाना हो गयी। ऊधमपुर पहुँचने पर कैंट की बेटियों और महिलाओं द्वारा यूनिट के लोगों को तिलक लगाकर तथा आरती उतारकर भव्य स्वागत किया गया I ऊधमपुर से चलकर यूनिट अगले दिन श्रीनगर पहुँच गई। अगले दिन यूनिट के सभी ट्रूप्स अपने अपने सामरिक जिम्मेदारी के स्थान के लिए चल पड़े़। एयर डिफेन्स ऑब्जरवेशन पोस्ट कमान अधिकारी कर्नल अजित विनायक पालेकर के नेतृत्व में लेफ्टिनेंट कर्नल एस परमेश्वरन (उपकमान अधिकारी), कैप्टन धीरज कुमार (एडजुटेन्ट), सूबेदार बिपिन बिहारी शर्मा तथा हवलदार घनश्याम लाल मीना के साथ अपने सामरिक स्थान मुगलपुरा (द्रास ) के लिए चल पड़ी।
यूनिट का अल्फ़ा ट्रूप मेजर हरेन्द्र दीप सिंह की कमान में, लेफ्टिनेंट प्रदीप्त दत्ता और सूबेदार निरंजन सिंह के साथ मध्यम गन एरिया कारगिल के लिए, ब्राबो ट्रूप लेफ्टिनेंट सुमित कोचर कि कमान् में अग्रिम पेट्रोलियम भंडार खुनमुह के लिए, चार्ली टूप मेजर पी शंकर और सूबेदार वी के पाण्डेय की कमान् में डिवीज़न मुख्यालय तथा मध्यम गन एरिया द्रास के लिए, डेल्टा ट्रूप लेफ्टिनेंट सुधीर सिरारी और सूबेदार सतीश कुमार की कमान में विमानन आधार शरीफाबाद के लिए, इको ट्रूप मेजर आई पी थ्रीटल, लेफ्टिनेंट एन मुथूशिवम् और सूबेदार श्रीराम वर्मा की कमान् में लेह एयरफील्ड के लिए और कैप्टन मलकीत सिंह सिद्धू और सूबेदार शमशेर सिंह की कमान में थवाईस एयर फील्ड की हवाई कि सुरक्षा के लिए अपने साजो सामान के साथ निकल पड़े। यह वह दिन था जब 130 वायु रक्षा रेजिमेंट सेना वायु रक्षा के इतिहास में एक नया अध्याय लिखने जा रही थी। देश के इतिहास में दुश्मन से दो दो हाथ करने के लिए अब तक सेना वायु रक्षा कोर की कोई भी एल सेवन्टी यूनिट जोजीला दर्रे को सड़क मार्ग से पार कर कारगिल सेक्टर की ओर नहीं गई थी। यह यूनिट के लिए परीक्षा कि भी घडी थी। इसे डायरेक्टर जनरल ऑफ़ एयर डिफेन्स आर्टिलरी की आशाओं के अनुरूप उतरना था। अपनी 1972 मॉडल की ज्यादातर गाडियों के साथ इस यूनिट के जवान पूरे जोश के साथ आगे बढ़ रहे थे और इस जोश को बढ़ाने में 959 वायु रक्षा कर्मशाला के जवान तकनीकी सेवाएँ देकर मदद कर रहे थे। 959 वायु रक्षा कर्मशाला का नेतृत्व मेजर सुधीर कुमार और कैप्टन अहलूवालिया कर रहे थे।
जब द्रास से आगे कारगिल, लेह, थ्वाईस जाने वाले ट्रूप आगे बढ़ रहे थे तब उनके सामने एक चुनौती खड़ी थी और इस चुनौती का सामना किए बिना आगे बढ़ना मुश्किल था। पाकिस्तान की ओर से आने वाला एक पहाड़ी नाला राष्ट्रीय राजमार्ग 1ए के साथ बहने वाली नदी में आकर मिलता है। पाकिस्तानी सेना द्वारा इसी नाले के साथ लगी तोपखाने की लंबी दूरी तक मार करने वाली तोपों से आवागमन को बाधित किया जा रहा था। आगे बढ़ने के लिए और दूसरा कोई रास्ता नहीं था। इस यूनिट के चालकों ने अपनी गाड़ियों की लाइट बंद कर दी और तोप तथा रडार के इन्चार्ज पीठ पर सफेद कपड़ा पहनकर गाड़ी के बायें अगले पहिए के सामने चलने लगे। अनुभवी चालकों ने उस सफेद कपड़े के सहारे आगे बढ़ना शुरू किया। यह काम बहुत ही जोखिम भरा था, लेकिन इस यूनिट के अनुभवी चालकों ने इस अनोखी सूझ बूझ का प्रयोग कर पाकिस्तानी रणनीति को मात दे दी। आपको बताते चलें कि यदि गाड़ी का पहिया थोड़ा भी बायें चला जाता तो गाड़ी पचासों फीट गहरे, बर्फीले पानी में गिर जाती। रात के घुप्प अंधेरे और द्रास सेक्टर की शरीर कंपकंपाने वाली सर्दी के कहर को झेलते हुए, स्पेस लांसर के जवान युद्ध के मैदान में बढे चले जा रहे थे। अपनी अपनी जिम्मेदारी का क्षेत्र आने पर युद्ध रणनीति के अनुसार अपनी एल 70 गनों और संचार साधनों को अपने अपने स्थान पर लगाया और समय समय पर आने वाली रणनीतिक सूचनाओं के अनुसार स्वयं को तैयार रखने में जुट गए। यूनिट के तोपची और रडार के निगहबान भूखे बाज की तरह पाकिस्तान के युद्धक हवाई जहाजों को निशाना बनाने को आतुर थे। रोज अपने ईष्ट से प्रार्थना करते कि आज पाकिस्तान का हवाई जहाज हमारे रण क्षेत्र में दिखाई पड़े और हम उसको निशाना बनायें । आपरेशन विजय अपने चरम पर था। हमारी सेना रोज किसी न किसी क्षेत्र में पाकिस्तानी फ़ौज को खदेड़ रही थी। हमारी वायु रक्षा सुरक्षा काफी मजबूत हो चुकी थी। सेना के विभिन्न संचार माध्यमों से हमारे तोपचियों को पल पल की खबर मिल रही थी । 10 जुलाई को कारगिल में तैनात अल्फ़ा ट्रुप के ऊपर पाकिस्तानी सेना के तोपखाने ने भीषण फायरिंग करना शुरू कर दिया। इस फायरिंग में अल्फ़ा ट्रुप की कमान पोस्ट का सेक्शन से संपर्क टूट गया। कमान पोस्ट से संपर्क टूटने पर तोपों और रडार से नियंत्रण टूट गया। इस समस्या को दूर करने के लिए कमान पोस्ट अधिकारी लेफ्टिनेंट प्रदीप्त दत्ता बाहर निकले और अपनी जान की परवाह न करते हुए रेंगते हुए संचार की लाइन की जाँच करने लगे। वह संचार लाइन को थोड़ी ही दूर जाँच पाए थे कि पाकिस्तानी तोपखाने का एक गोला उनके पास आकर गिरा और वह बुरी तरह घायल हो गए। फायरिंग के बीच में वहाँ पर मौजूद जवानों ने उनको वहाँ से उठाकर कारगिल अस्पताल पहुँचाया और वहाँ पर उनका ऑपरेशन किया गया । घाव ज्यादा गहरे होने के कारण उन्हें पहले लेह के अस्पताल और फिर कमांड अस्पताल चंडीमंदिर भेज दिया गया। । इसी समय मुगलपुरा में डिव हेडक्वार्टर को हवाई सुरक्षा प्रदान कर रहे चार्ली ट्रुप का एक सेक्शन पाकिस्तानी तोपखाने द्वारा की जा रही फायरिंग के चपेट में आ गया। इस पाकिस्तानी फायरिंग में एक गोला हमारे जनरेटर के टायर को चीरता हुआ संचार व्यवस्था संभाल रहे लांसनायक सूरजमल के शरीर को खरोंचता हुआ निकल गया। कुछ सामान का नुकसान होने के अतिरिक्त जवानों को किसी भी प्रकार की हानि नहीं हुई ।
युद्ध के मैदान में यूनिट के जवानों का हौसला बढ़ाने के लिए तत्कालीन रक्षामंत्री स्वर्गीय श्री जार्ज फर्नांडिस, सीनियर कर्नल कमांडेंट मेजर जनरल पार्थसेन तथा ब्रिगेड कमांडर, ब्रिगेडियर कनवर लाल ने यूनिट का दौरा किया और यूनिट के अधिकारियों, जूनियर कमीशन अधिकारियों और जवानों का हौसला बढ़ाया। युद्ध के बीच में ही यूनिट के एडजूटेंट का पद संभाल रहे कैप्टन धीरज कुमार और उप कमान अधिकारी का पद संभाल रहे लेफ्टिनेंट कर्नल एस परमेश्वरन का कार्यभार क्रमशः कैप्टन सुधीर सिरारी और लेफ्टिनेंट कर्नल भरत कुमार को संभालना पड़ा क्योंकि दोनों अधिकारियों को सेवानिवृत्त होना था। इसी बीच रेजिमेंट क्वार्टर मास्टर का महत्वपूर्ण पद संभाल रहे कैप्टन आर पी सिंह का स्थानांतरण लद्दाख स्काउट में हो गया। युद्ध के दौरान ही अधिकारियों की संख्या को पूरा रखने के लिए तीन नए अधिकारियों मेजर एम एम मेहरा, लेफ्टिनेंट राहुल साहनी और लेफ्टिनेंट दशमेश सिंह मान को सेना मुख्यालय द्वारा द्रास सेक्टर में भेजा गया।
26 जुलाई लगभग 11 बजे पूर्व सैन्य अधिकारी और फिल्म अभिनेता नाना पाटेकर, जम्मू कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री फारुख अब्दुल्ला ने द्रास सेक्टर के मुगलपुरा में स्थित एयर डिफेन्स ऑब्जरवेशन सेंटर का दौरा किया और जवानों को संबोधित कर हौसला बढ़ाया। आपको यह बताते चलें की श्री नाना पाटेकर उस समय आपरेशन विजय में एक सैनिक के रूप में अपनी यूनिट में अपनी सेवाएँ दे रहे थे। ठीक इसी समय कारगिल में स्थित अल्फ़ा ट्रूप का फिल्म अभिनेत्री रवीना टंडन ने दौरा किया और लोगों के मनोबल को बढ़ाया। 26 जुलाई को ही आधिकारिक रूप से सरकार ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी। रणनीतिक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए यूनिट के एयर डिफेन्स ऑब्जरवेशन सेंटर को द्रास के मुगलपुरा से कारगिल और चार्ली ट्रूप को पंडरास में स्थानांतरित कर दिया गया। जोजिला दर्रे के पार, स्थिति को संभाल रहे, इस यूनिट के सभी ट्रूप को सेना मुख्यालय द्वारा श्रीनगर की ओर वापस आने का आदेश दे दिया गया। 29 सितम्बर को यूनिट के सभी ट्रूप विजयी भाव से यूनिट के युद्ध घोष ‘दुर्गे माता की जय’ की नारे से लेह, थ्वाइस, कारगिल, खुनमुह और द्रास के आकाश को गुंजायमान करते हुए अपने साजो सामान के साथ नए स्थान की ओर चल पड़े। लगभग 600 किलोमीटर के दायरे में फैली और ऑपरेशन विजय में विभिन्न सेक्टरों की हवाई सुरक्षा संभाल रही इस यूनिट को उसके शौर्य के लिए 01 सेना मेडल और 04 आर्मी कमांडर प्रशस्ति पत्र प्रदान किए गए। 1971 के युद्ध में पश्चिमी सेक्टर में पाकिस्तान भारतीय सेना की वायु रक्षा कोर की आग उगलती गनों के सामने अपने युद्धक विमानों का हश्न देख चुका था। उसके युद्धक विमानों को वायु रक्षा कोर के तोपचियों ने कटी पतंग की तरह आसमान में मार गिराया था। वायु रक्षा आर्टिलरी कोर की कई यूनिटों को उनकी वीरता के लिए युद्ध सम्मान भी मिले है। 1971 के युद्ध में अपनी दुर्गति से सीख लेते हुए पाकिस्तान ने ऑपरेशन विजय में अपने युद्धक विमानों को उड़ाने की हिमाकत नहीं की, जिसके कारण इस यूनिट के तोपचियों को एक और इतिहास रचने का मौका नहीं मिला।
130 वायु रक्षा रेजिमेंट की स्थापना 28 जनवरी 1967 को असम राज्य के रोरियां एयर फील्ड में एक प्रादेशिक सेना के रूप में हुई थी। यह यूनिट अब तक 1971 और 1999 के दो युद्धों में भाग ले चुकी है। इसके अलावा देश में उत्पन्न हुई विषम परिस्थितियों में हरियाणा और आपदाओं में गुजरात और पंजाब में इस यूनिट ने अपनी क़ाबिलियत को साबित किया है। इन उल्लेखनीय सेवाओं के लिए 01 मेंशन इन डिस्पैचेज, 02 सेना मैडल (वीरता), 10 चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ प्रशस्ति पत्र, 07 जी ओ सी इन सी प्रशस्ति पत्र (वीरता) और 43 जी ओ सी इन सी प्रशस्ति पत्र (उल्लेखनीय सेवा) प्रदान किए गए हैं।
( यह लेख ऑपरेशन विजय में भाग लिए हुए सेवानिवृत्त अधिकारियों, जूनियर कमीशन अधिकारियों और जवानों से हुई बातचीत पर आधारित है। इन पंक्तियों का लेखक द्रास और कारगिल में इस युद्ध में भाग ले चुका है।)
तत्कालीन रक्षामंत्री श्री जार्ज फर्नांडिस जी से मिलते हुए 130 वायु रक्षा रेजिमेंट के तत्कालीन कमान अधिकारी कर्नल अजित विनायक पालेकर के साथ फोटो।