उपन्यास मां – भाग 33 पैर की जूती।

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ब्यूरो छत्तीसगढ़ः सुनील चिंचोलकर।

 

उपन्यास मां – भाग 33 पैर की जूती।

 

रश्मि रामेश्वर गुप्ता, बिलासपुर छत्तीसगढ़।

 

मिनी के ससुराल वालो को जब पता चला कि माँ को इस तरह भैया ने अपमानित किया तो उनसे रहा नही गया। वे सभी माँ से मिलने घर आये। मिनी को और सर को बहुत दिलासा दिए। खूब समझाए और सर से कहने लगे.. “तुम बिल्कुल चिंता मत करो। तुमने अपनी सासु मां को लाकर बहुत सही काम किया है। मां की सेवा करना कभी भी गलत नही होता।”

सिर्फ तीसरे नं के जेठ जेठानी नही आये क्योंकि मिनी और सर ने देखा कि शादी के 14 वर्षो के बाद भी उनका व्यवहार नही बदला बल्कि पहले से भी अधिक उग्र होता चला गया तो दोनो ने बिना बहस किये पर्याप्त दूरी बना ली थी। मिनी और सर ने कभी उनसे किसी भी बात पर बहस नही किया था परंतु जब उनका व्यवहार असहनीय हो गया तो चुपचाप उनसे दूरी बना लेने में ही अपनी भलाई समझी। मां को लाने के 3 वर्ष पहले से ही उनके घर आना जाना मिनी और सर् छोड़ चुके थे। बाकी ससुराल के सभी सदस्य मां से मिलने आये। किसी भी सदस्य ने ये नही कहा कि तुम्हे अपनी सासू मां को नही लाना था। बल्कि मां के दुख और तकलीफ से सभी द्रवित थे।

मिनी को पहली बार ऐसा लगा कि सब कहते है ससुराल के और मायके के प्यार में बहुत फर्क होता है पर मिनी को ऐसा लगा कि ससुराल वालो के हृदय में मिनी के लिए उतना ही प्रेम है जितना मायके वालो के मन में होना चाहिए। मिनी के आखों से अविरल धारा बहती जब उसे याद आता कि भैया ने किस तरह रास्ते में सभी को अपमानित किया। भैया ने उस व्यक्ति का अपमान किया जो उसकी मां की सेवा कर रहा है, सोचकर भी लगता था कि मिनी को अभी के अभी प्राण त्याग देना चाहिए पर नही । जब मां का खयाल आता तो लगता था अब सारी दुनिया भी अपमानित करे तो वो सहेगी।

मिनी को याद आता था कि जिस दिन मिनी ने ससुराल की दहलीज़ पर कदम रखे थे उस दिन तीसरे नं के जेठ ने घर के सभी बड़ो के साथ एक मीटिंग की थी और कहा था कि मेरे ससुर जी ने आप सभी के नाम ये संदेश भिजवाया है कि ये जो लड़की आई है उसे पैर की जूती बनाकर रखना है। बिल्कुल भी सर में नही चढ़ाना है। मिनी को तो इस बात का पता कई वर्षो के बाद चला। और जब पता चला तो मिनी सोचने लगी धन्य है मेरे ससुराल के लोग जो मेरे जेठ की बातों का उन पर जरा भी असर नही हुआ। बल्कि उन सब के मन में मिनी के प्रति प्रेम और बढ़ गया। यही बात जेठ और जेठानी को नागवार लगती थी।

मिनी तो शादी के बाद ससुराल में बिल्कुल स्तब्ध रहती थी। हालांकि इस बात का किसी को एहसास नही होने देती थी परंतु मिनी का जीवन नीरस हो चला था। ससुराल में अगर मिनी जीवित थी तो सिर्फ सासुमां के प्रेम के बदौलत। मिनी की डोली घर पहुँचने के पहले ही सासू मां और बड़े जेठ ने घर के छोटे बड़े सभी सदस्य को मना कर दिया था उन्होंने सभी को स्पष्ट कह दिया था कि बहू से दहेज़ के विषय में कोई धोखे से भी कुछ भी नही कहेगा और सच में मिनी से दहेज़ के बारे में कभी किसी ने कुछ भी नही पूछा। परंतु मिनी का स्तब्ध रहना स्वाभाविक था। शादी के बाद एक लड़की के मन में जो तमन्नाएं होती है सजने संवरने की घूमने फिरने की वो तो पूरी तरह खत्म हो चुकी थी । एक सूटकेस में जो साड़ी थे मिनी वही पहनती थी। पतिदेव भी स्तब्ध रहते थे। शादी के बाद लगभग एक महीने तक मिनी ससुराल में रही। इस एक महीने में उसे तीसरे जेठ जेठानी से भरपूर कड़वाहट मिली।

सर के दोस्त पचमढ़ी में रहते थे। उसने सर को वहाँ बुलाया था। जब सर ने घर में बात रखी कि वे मिनी के साथ पचमढ़ी जाना चाहते है तो तीसरी जेठानी ने बड़े रूखे स्वर में कहा -“जब इस घर से कोई नही गया शादी के बाद घूमने तो तुम कैसे जाओगे ? ”

उस समय ससुराल में उन्ही का चलता था। सर बड़े मायूस हुए। मिनी तो पचमढ़ी घूमकर वहाँ कई दिनों तक रहकर आ चुकी थी। उसने सर को समझाया कोई बात नही हम फिर कभी चले जाएंगे। जब मिनी की शादी का सी. डी. आया तो बच्चे दौड़कर खुशी के मारे मिनी के पास आये बताने और देखने का इंतजार करने लगे। तीसरे जेठ जेठानी ने रूखे तेवर में कहा – “उनके मायके में हमारी कितनी इज़्ज़त हुई, ये सबको पता है इसलिए इस घर का कोई बच्चा भी उनकी शादी का एलबम सी.डी.कुछ भी देखना बिल्कुल नही चाहता।”

कहते थे जहाँ से मिनी आई है, वहा से हमारी सात पीढ़ी तक कोई अब लड़की नही लाएगा। वही जेठ जेठानी बाहर ये कहते थे कि हम बिना दहेज़ के आदर्श विवाह करके लाये है। सासू मां उनकी बातें सुनकर बहुत झुंझलती। सासू मां परछाई की तरह मिनी के साथ रहती। तीसरे जेठ जेठानी घर में मिनी और सर के लिए जितनी कडुवाहट घोलने का प्रयास करते मिनी के लिए वो मिठास में बदल जाता था। उनका क्रोध दिन बदिन बढ़ता ही चला गया। मिनी चुपचाप बिना किसी विरोध के सब सुनती सब सहती क्योकि उसकी जीने की इच्छा कही न कही खत्म हो रही थी। परंतु मिनी के चेहरे पर मुस्कान रहती थी।

मुस्कान हमारा कितना प्यारा साथी है न जो दिल के दर्द को जरा सा भी उभरने नही देता। न ही सर की पीड़ा को मिनी दूर कर सकती थी न ही मिनी की पीड़ा का एहसास किसी को होता था। शुक्र है मिनी का जॉब था। एक महीने बाद जब भैया उसे लेने ससुराल आये तो उन्हें मिनी के कमरे की हालत देखकर पर्याप्त दुख हुआ था। उन्हें लगा कि सारा सामान होते हुए भी उनकी बहन के पास कुछ भी नही। बड़े दुखी मन से मिनी को भैया घर लेकर आये थे।

वहां घर तो क्या पूरे समाज को मिनी के बयान का इंतज़ार था । सब यही जानना चाहते थे कि मिनी को ससुराल में किसी ने सताया तो नही? मिनी को दादी-दादा की बाते याद थी। वे कहा करते थे —“बेटा तो केवल एक ही कुल की लाज रखता है परंतु बेटी सातों कुल की लाज रखती है।” मिनी को आज उस बात की सार्थकता समझ आ रही थी………………………..क्रमशः

 

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