हरी राम यादव, अयोध्या, उ. प्र.।
जयंती पर विशेष।
कलाम को सलाम।
जीवन में परिस्थिति चाहें जैसी भी हों, पर जब आप अपने सपने को पूरा करने की ठान लेते हैं तो वह पूरे ही हो जाते हैं। कर्म को भाग्य के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता और कर्म एक ऐसा सत्य है जो हर मुश्किल को आसान बना देता है । जब तक हम किसी कार्य को करने के बारे में सोचते रहते हैं तो वह बहुत मुश्किल नजर आता है और जब उस कार्य को करना शुरू कर देते हैं तो थोडा पूरा होने के बाद सरल नजर आने लगता है । यह जीवन में कर्म का निर्विवाद सत्य है । पृथ्वी के प्रत्येक जीव का जीवन कर्म के संघर्ष से ही संचालित होता है और जीवन में संघर्ष के बिना कुछ भी नहीं मिलता है, यह जीवन का दूसरा निर्विवाद सत्य है । किसी कवि ने लिखा है :-
जो भाग्य भरोसे जीते हैं, उनको भाग्य सताता है ।
उठकर लेते हैं जो टक्कर, उनको राह दिखाता है ।।
मिसाइल मैन के नाम से विख्यात डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का जीवन कर्म के धर्म से पूरी तरह जुडा हुआ है। डॉ. कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में धनुषकोडी नामक गांव में हुआ था। उनका पूरा नाम अवुल पकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम था। उनकी माता का नाम असीम्मा और पिता का नाम जैनुलाब्दीन था। उनकी माँ एक गृहणी और पिता पेशे से नाविक थे। डॉ. कलाम पांच भाई और पांच बहन थे। डॉ. कलाम का बचपन संघर्षों से भरा रहा था। वह बचपन से ही सीखने में बहुत रूचि रखते थे। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा रामेश्वरम की पंचायत के प्राथमिक विद्यालय से पूरी की, तमिलनाडु के रामनाथपुरम से मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरा करने के बाद वह आगे की पढाई के लिए 1950 में मद्रास चले गए। उन्होंने ‘मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’ से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन में एक वैज्ञानिक के रूप में शामिल हुए। उन्होंने वहां हावरक्राफ्ट परियोजना पर काम किया। इसके बाद वह वर्ष 1962 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन से जुड़ गए । अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में उन्हें परियोजना महानिदेशक के रूप में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह एस. एल. वी. तृतीय प्रक्षेपास्त्र बनाने का श्रेय हासिल किया । 1980 में इन्होंने रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित किया । इसरो लॉन्च व्हीकल प्रोग्राम को आगे बढ़ाने का श्रेय भी डॉ कलाम को जाता है। कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी नियंत्रित प्रक्षेपास्त्र को डिजाइन किया ।
जुलाई 1992 से दिसम्बर 1999 तक रक्षा मंत्री के विज्ञान सलाहकार तथा सुरक्षा शोध और विकास विभाग के सचिव रहे । पोखरण में दूसरी बार परमाणु परीक्षण का श्रेय भी उन्हें जाता है, पोखरण में दूसरी बार परमाणु परीक्षण डा. अब्दुल कलाम की प्रतिभा और सोच का परिणाम थी । इस परमाणु परीक्षण से पूरा विश्व दंग रह गया था , पूरे विश्व की सूचना तकनीकी और ख़ुफ़िया विभाग कलाम की प्रतिभा के आगे नतमस्तक हो गयी थी । विश्व की किसी भी एजेंसी को इस परीक्षण की कानो कान खबर नहीं हुई थी । कलाम ने भारत के विकास स्तर को 2020 तक विज्ञान के क्षेत्र में अत्याधुनिक करने के लिए एक विशिष्ट सोच प्रदान की। वह भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे। 1982 में वे भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में वापस निदेशक के तौर पर आये और उन्होंने अपना सारा ध्यान गाइडेड मिसाइल के विकास पर केन्द्रित किया। उन्होंने अग्नि और पृथ्वी जैसे प्रक्षेपास्त्रों को स्वदेशी तकनीक से बनाया और उनका सफल परीक्षण भी किया । इनके अलावा उन्होंने त्रिशूल , नाग , आकाश और ब्रह्मोस जैसे मिसाइलों के विकास में भी अहम भूमिका निभाई।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम 18 जुलाई, 2002 को भारत के 11वें राष्ट्रपति बने और वर्ष 2002 से 2007 तक भारत के राष्ट्रपति पद पर आसीन रहे और इसके बाद उन्होंने फिर से राष्ट्रपति चुनाव ना लड़ने का फैसला किया। डॉ. कलाम न केवल एक महान वैज्ञानिक थे बल्कि एक प्रेरणादायक लेखक और वक्ता भी थे। उन्होंने देश भर में युवाओं को घूम घूम कर संबोधित किया और उन्हें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने इंडिया 2020 : ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम, विंग्स ऑफ फायर: एन ऑटोबायोग्राफी, इगनाइटेड माइंड्स: अनलीजिंग द पॉवर विदिन इंडिया, द ल्यूमिनस स्पार्क्स: ए बायोग्राफी इन वर्स एंड कलर्स, मिशन ऑफ इंडिया: ए विजन ऑफ इंडियन यूथ, द लाइफ ट्री, पोयम्स, इनडोमिटेबल स्पिरिट, हम होंगे कामयाब, अदम्य साहस, इन्स्पायरिंग थॉट्स: कोटेशन सीरिज, स्प्रिट ऑफ इंडिया, फोर्ज योर फ्यूचर: केन्डिड, फोर्थराइट, इन्स्पायरिंग, बियॉन्ड 2020: ए विजन फॉर टुमोरोज इंडिया, गवर्नेंस फॉर ग्रोथ इन इंडिया, लर्निंग हाउ टू फ्लाई, एनलाइटेंड माइंड्स, फेलियर इस द बेस्ट टीचर नामक पुस्तकों का लेखन भी किया ।
देश के प्रति उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें 40 से अधिक विश्वविद्यालयों और संस्थानों द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि दी गयी । उनके 79 वें जन्मदिन को संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाया गया । उन्हें भारत सरकार द्वारा 1981 में पद्म भूषण, 1990 में पद्म विभूषण और 1997 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया । 27 जुलाई 2015 को 84 वर्ष की अवस्था में शिलांग में एक कार्यक्रम के दौरान दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। जहाँ आज देश के संवैधानिक तथा अन्य पदों पर बैठे लोगों का जीवन चकाचौंध और दिखावे से भरा हुआ है वहीँ डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम का जीवन सादगी से भरा था। उनके पास संपत्ति के नाम पर कोई भी संपत्ति नहीं थी। उनके पास जो चीजें थी उसमें 2500 किताबें, एक कलाई घडी , छह शर्ट, चार पायजामा, तीन सूट और मोजे की कुछ जोड़ियां थी। रक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के कारण आज देश उस मुकाम पर खड़ा है जहाँ पूरा विश्व हमारे देश की ओर देखता हुआ नजर आता है और यह उपलब्धि डा. कलाम की वैज्ञानिक सोच का परिणाम है । ऐसी उत्कृष्ट सोच और युवाओं को प्रेरित करने वाले कार्यों और देश के प्रति उनके नजरिये के कारण उनका नाम देश के इतिहास में हमेशा स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा ।