काव्य रत्न डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
गुरु ही सच्चा मित्र है।
गुरु ही ज्ञान मित्र की धारा।
गुरु से बड़ा कौन है प्यारा??
गुरुवर से परहेज करेगा।
वही डूब कर नित्य मरेगा।।
जो गुरु को सर्वोच्च समझता।
मित्र बना वह सहज विचरता।।
गुरु जिसको हैं मित्र बनाते।
मधुर ज्ञान रस उसे पिलाते।।
अपना सारा ज्ञान सिखाते।
मित्र बना कर राह दिखाते।।
बाँह पकड़ कर ले चलते हैं।
मित्र शिष्य मधु फल बनते हैं।।
गुरु से कपट किया जो करता।
अंध कूप में गिरता पड़ता।।
कोई नहीं बचा सकता है।
गुरु आशीष बचा सकता है।।