डॉ. हरि नाथ मिश्र, अयोध्या,उ.प्र.।
राष्ट्र-भाषा हिंदी(दोहे)
हिंदी-भाषा के बिना,कभी न हो कल्याण।
आदर इसका सब करें,यही देश का प्राण।।
हिंदी-भाषा विश्व की,भाषा एक प्रधान।
हिंदी में अभिव्यक्ति से,मिलती है पहचान।।
अपनी बोली बोल कर,हो आनंद अपार।
तुलसी-मीरा-सूर हैं,ज्ञान-मोद-आगार।।
करें प्रतिज्ञा आज हम,भारत-भाषा हेतु।
करें पार हम ज्ञान-सर,चढ़ निज भाषा-सेतु।।
हो विकसित समुचित यहाँ, हिंदी-भाषा-ज्ञान।
होवे लेखन-कथन में,हिंदी का गुण-गान ।।
चाहे हो इंग्लैंड भी,वा अमरीका देश।
हिंदी का डंका बजे,चहुँ-दिशि,देश-विदेश।।
भारतेंदु कविश्रेष्ठ ने,दिया चेतना खोल।
हमें कराया स्मरण,निज भाषा अनमोल।।
उनके इस संदेश के,हैं कृतज्ञ सब लोग।
निज भाषा का दे दिया,सुंदर-अनुपम भोग।।
हिंदी भाषा का हमें,करना है उत्थान।
इससे बढ़कर है नहीं,कोई कर्म महान।।
गौरव-गरिमा-शान है,यह अपना सम्मान।
रहें अमर अब विश्व में, हिंदी-हिंदुस्तान।।