वीरगति दिवस पर विशेष। सिपाही जगपाल सिंह, वीर चक्र (मरणोपरांत)

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हरी राम यादव, अयोध्या, उ. प्र.।

         वीरगति दिवस पर विशेष।

सिपाही जगपाल सिंह, वीर चक्र (मरणोपरांत)

अक्टूबर के महीने में मैदानी इलाकों में हल्की हल्की सर्दी शुरू हो चुकी थी । लोग सर्दी के कपड़ों का इंतजाम करने में लग गए थे। किसान खेती किसानी के काम में मशगूल हो चुके थे और सेना के कई जवान अपने खेती बाड़ी के काम में अपने घर वालों का हाथ बटाने के लिए गाँव आये हुए थे । हमारा पड़ोसी देश चीन अन्दर ही अन्दर बदला लेने की भावना से जल रहा था और उस मौके की तलाश में था जब हमारे देश की सेना के लिए मुश्किल समय हो । उसे भारत द्वारा दलाईलामा को शरण दिया जाना अखर रहा था । उसने अकारण ही 20 अक्टूबर 1962 को हमारे देश पर हमला बोल दिया ।

सिपाही जगपाल सिंह की यूनिट 2 राजपूत रेजिमेंट नेफा एरिया के धोला में तैनात थी और वह अपनी कंपनी की एक लाइट मशीन गन पोस्ट पर तैनात थे। 20 अक्टूबर 1962 को चीनी सैनिकों ने उनकी पोस्ट पर पीछे से हमला कर दिया। चीनी सैनिकों पर कारगर फायर करने के लिए वे अपनी चौकी से बाहर निकल पड़े। उनका दूसरा साथी जो कि दूसरी लाइट मशीनगन से फायर कर रहा था वह पहले ही वीरगति को प्राप्त हो चुका था। अपने सैनिकों को कवरिंग फायर देने के लिए चीनी तोपखाने से भारी गोलाबारी हो रही थी। इस विषम परिस्थिति में भी सिपाही जगपाल सिंह ने फायर जारी रखा। उनके द्वारा की जा रही लगातार फायरिंग से भारी संख्या में दुश्मन हताहत हुआ। इसी बीच उनकी बायीं जांघ में चीनी सैनिकों द्वारा की जा रही फायरिंग का ब्रस्ट फायर लग गया । उनके शरीर से तेजी से खून बह रहा था। उन्होंने देखा कि लगातार की जा रही फायरिंग से उनके पास रखा गोला बारूद भी समाप्त हो गया। वे घायल होने के बावजूद अपनी खांई की ओर गये और गोला बारूद लाकर फायर जारी रखा और कई चीनी सैनिकों को मार गिराया । इसी बीच उन्हें दूसरा ब्रस्ट फायर लग गया और वे वीरगति को प्राप्त हो गये। उनकी इस असाधारण वीरता के लिए 20 अक्टूबर 1962 को उन्हें मरणोपरान्त वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

सिपाही जगपाल सिंह का जन्म जनपद मैनपुरी के गांव मनौना में श्रीमती रामकली देवी और श्री गिरन्द्र सिंह के यहाँ 01 जुलाई 1937 को हुआ था। इन्होने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने गांव के स्कूल से पूरी की । सिपाही जगपाल सिंह के तीन भाई श्री राम सिंह , छोटे सिंह तथा रघुराज सिंह और एक बहिन श्रीमती विद्यावती देवी थे। सिपाही जगपाल सिंह का विवाह श्रीमती राम मूर्ति देवी से हुआ था । वह भारतीय सेना में 23 जुलाई 1956 को भर्ती हुए और प्रशिक्षण पूरा करने के पश्चात 2 राजपूत रेजिमेन्ट में पदस्थ हुए। सिपाही जगपाल सिंह के दो पुत्रियां भुवनेश तथा कमलेश हुईं जिनमें श्रीमती कमलेश का निधन हो चुका है । सिपाही जगपाल सिंह की पत्नी श्रीमती राम मूर्ति देवी का भी निधन 24 फ़रवरी 2024 को हो गया ।

सिपाही जगपाल सिंह के साहस और वीरता को जीवंत बनाए रखने और उनकी वीरता और बलिदान के सम्मान के लिए राज्य सरकार या स्थानीय प्रशासन द्वारा कोई ऐसा कार्य नहीं किया गया है जिससे लोग अपने इस वीर की वीरता पर गर्व कर सकें। इनकी बेटी श्रीमती भुवनेश और भतीजे जीतेन्द्र सिंह का कहना है कि यदि सरकार इनके गाँव को जाने वाली सड़क पर एक शौर्य द्वार बनवा दे और सड़क का नामकरण सिपाही जगपाल सिंह, वीर चक्र के नाम पर कर दे तो इनके पिता के लिए सम्मान की बात होगी और गांव मनौना के लोग अपने गांव के वीर सपूत की वीरता पर गर्व का अनुभव करेंगे ।

आपको बताते चलें कि इस युद्ध में हमारे देश के 1383 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे जिसमें से अकेले उत्तर प्रदेश के लगभग 402 सैनिक थे । यदि हम अन्य अन्य आकडों की बात करें तो इस युद्ध में हमारे लगभग 1047 सैनिक घायल , 3968 सैनिक युद्धबंदी और 1696 सैनिक लापता घोषित किए गए थे, वहीँ चीन के 1300 सैनिक मारे गए थे और 1697 सैनिक घायल हुए थे । इस युद्ध में हमारे सैनिकों को उनके अदम्य साहस और वीरता के लिए 03 परमवीर चक्र, 21 महावीर चक्र और 72 वीर चक्र प्रदान किए गए थे ।

 

 

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