डॉ. रामबली मिश्र वाराणसी।
शुभांगी छंद।
विरले मनुजा,इस लोक दिखें, जो अति उत्तम,निर्मल हैं।
अधिकांश यहाँ,दुख दानव हैं,पाप भरा मन,छल-बल है।
विकृत मानस,दूषित नस -नस,घोर विनाशक,हैं जग में।
विष नाग बने,चलते रहते,रक्तिम भावन,है रग में।
ईमान कहाँ,शैतान यहाँ,धन लोलुपता,गहरी है।
चोर-उचक्कों ,कूट दरिंदों,नीच-पतित की,नगरी है।