उपन्यास मां – भाग 15 सामाजिक आयोजन।

Spread the love

रश्मि रामेश्वर गुप्ता, बिलासपुर छत्तीसगढ़

उपन्यास मां – भाग 15 सामाजिक आयोजन।

टीस तो उठती थी मन में, आखिर क्यों माँ के साथ ऐसा व्यवहार किया गया? इसी बीच जहाँ से माँ को लेकर आये थे वहाँ एक सामाजिक आयोजन किया जा रहा था जिसमे आयोजक ने मिनी को भी आमंत्रित किया था। आयोजक ने जब बताया कि उक्त कार्यक्रम में बुजुर्गों को सम्मानित किया जाना है तो मिनी वहाँ जाने को सहर्ष तैयार हो गयी क्योकि उसके आलेख मुख्यतः बुज़ुर्गों के ऊपर ही होते थे। उसने आयोजक से कहा- “भैया! मैं अवश्य आऊंगी। ” पर शायद आयोजक ने मिनी की बातों को हल्के से लिया। उन्हें उम्मीद नही थी कि मिनी सही में आएगी। मिनी अपने पति को लेकर उस आयोजन के लिए सुबह निकल गयी थी। दोपहर को वो पहुची। उसने आयोजक को फोन लगाकर बताया कि हम लोग यहाँ आ चुके हैं, अब आयोजन स्थल पर पहुच रहे हैं तो मिनी को ऐसा लगा कि वो कुछ चौक से गए। फिर भी मिनी आयोजन में समय से पूर्व पहुँच गई थी। उसने सभी का बढ़के स्वागत किया। क्यों न करती वो अपने मायके के कार्यक्रम में आई थी। सभी मायके के लोग वहाँ उपस्थित थे। आस-पास से सभी लोग आये हुए थे। मिनी किसी के लिए अजनबी नही थी। मिनी ने संचालक से निवेदन किया कि उसे भी कुछ मिनिट्स बोलने का अवसर दिया जाए। संचालक ने इस बात को प्रत्येक सदस्य के पास रखा कि मिनी भी कुछ कहना चाहती है क्या उसे कहने का अवसर दिया जाय? बात सभी सदस्यों के पास गयी परंतु अफसोस कि किसी ने हामी नही भरी क्योकि मिनी के भैया उस कार्यक्रम की शूटिंग कर रहे थे। लोगो को ये लगा कि मिनी कुछ शिकायत न कर दे। लोगो के मन में अज्ञात भय बैठ गया कि कहीं कुछ बवाल न हो जाए। मिनी से कहने लगे कि ये तो तुम्हारा पारिवारिक मामला है।

मिनी इसलिए दुखी हुई कि लोगो ने ये तक नही सोचा कि आखिर मिनी क्या कहने वाली है? उसकी बातों को सुनने का भी साहस कोई नही कर सका। मिनी पूरे कार्यक्रम में रुकी रही। सारे बुज़ुर्ग आये।

जो चल फिर नही पा रहे थे उन्हें उनके बच्चे सहारा देकर ले के आये थे। मिनी किसी के लिए अजनबी नही थी। सभी का सम्मान हुआ। अंत में सभी को माईक दी गयी और सभी से सिर्फ अपना परिचय देने कहा गया और ये भी कहा गया कि सिर्फ अपना परिचय दें। मिनी समझ रही थी कि अभी भी खौफ है कि परिचय के अलावा मिनी कुछ न कह दे। मिनी की भी बारी आई। उसने भी अपना परिचय दिया और ये बात उसने जरूर कही कि वो आयोजक के आमंत्रित करने पर यहाँ आई है। लोगो ने तालियां भी बजाई।

फिर मिनी वहाँ आये सभी बुज़ुर्गों के आशीर्वाद लेकर वहां से वापसी के लिए निकल गयी। तब तक अंधेरा हो चुका था। पर वो अपने आँसू नही रोक पा रही थी।

मिनी को ऐसा लग रहा था जैसे उसकी आँखों से आँसू नही खून बह रहे थे। पति ने धीरज बंधाया। बोले – “कोई बात नही मिनी! वहाँ तुम्हे बोलने का अवसर नही दिया गया इसमें दुखी होने वाली कोई बात नही। इसमें उनका भी कोई दोष नही। उन्हें डर था कि कही तुम्हारी बातों से वहाँ कोई बखेड़ा न खड़ा हो जाए।”

मिनी को लगा कि सुनने से पहले ही ये सोच लिया गया कि मैं क्या बोलूंगी? अगर ऐसा था तो मुझे यहाँ बुलाया ही क्यों गया? ये बात मिनी के कलेजे को अंदर तक बेध गई।

उसे पता चल गया कि जिस एरिये को वो अपना मायका समझ कर आई है, वो कहाँ तक मिनी का साथ देंगे। उसे पूरी तरह समझ आ गया कि अब इस लड़ाई में मिनी अकेली है। भैया उससे बात तक नही किये। मां के बारे में पूछा तक नही। यहाँ तक कि वहां किसी ने नही पूछा कि मां कैसी है। मिनी को लगा जैसे उसने माँ को बचाकर बहुत बड़ा अपराध कर दिया। अगर भैया के घर में वो तड़प-तड़प कर मर जाती तो भी मिनी को भैया का साथ देना था। तब वो सबके लिए सही होती। जब से मिनी मां को लेकर आई थी तब से भैया से सिर्फ एक ही दिन बात हुई थी वो भी फिजियोथेरेपिस्ट के सामने। फिर तो कभी कोई भी बात ही नही हुई। किसी प्रकार की शिकायत वाली भी बात नही हुई।

मिनी का कुसूर सिर्फ इतना था कि 2-3 दिन की जिंदगी जिसकी बची थी उस महिला को वो अपने घर ले के चली गयी। किसी ने ये नही सोचा कि वो 1 वर्ष तक जीवित कैसे है? हाय री दुनिया! मिनी सिहर उठी। जबकि वहाँ के अधिकांश लोग मां को देखकर आ चुके थे इसलिए कि वो अब कुछ दिनों की मेहमान है।

मिनी को दुख इस बात का भी था कि वो पति को लेकर वहाँ गयी थी, उनके सामने ये सब कुछ हुआ। काफी रात को दोनो घर पहुँचे पर वहाँ जो भी घटना घटी वो मिनी के लिए बहुत बड़ी सबक थी।

मिनी इस बात को उस दिन स्वीकार कर चुकी थी कि मां और बेटी के इस जीवन संघर्ष में वो अकेली ही है और अकेली ही रहेगी। उसे इस बात की बड़ी तकलीफ थी कि जिन्हें वो अपना समझ कर इतनी दूर अपने पति को ले कर आई वही लोग उनकी बातों को सुने बगैर ही उसे ठुकरा दिए।………………क्रमशः

 

  • Related Posts

    प्रेम-पथ(16/16)

    Spread the love

    Spread the loveडॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या (उ0प्र0)   प्रेम-पथ(16/16) प्रेम-डगर है ऊभड़-खाभड़, इसपर चलो सँभल कर भाई। इसमें होती बहुत परीक्षा- असफल यदि, हो जगत-हँसाई।   दाएँ-बाएँ निरखत चलना,…

    जाति-धर्म के नाम पर,

    Spread the love

    Spread the loveप्रियंका सौरभ  रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,  हिसार (हरियाणा)   जाति-धर्म के नाम पर, छिड़ती देखो जंग॥   भारत के गणतंत्र की, ये…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    You Missed

    भारत में बुजुर्ग आबादी की समस्याएँ।

    • By User
    • December 22, 2024
    • 6 views
    भारत में बुजुर्ग आबादी की समस्याएँ।

    मानवता और योग को सदैव समर्पित रहे स्वामी सत्यानंद। 

    • By User
    • December 22, 2024
    • 4 views
    मानवता और योग को सदैव समर्पित रहे स्वामी सत्यानंद। 

    जाने सर्दियों में कैसे रखें त्वचा का ध्यान।

    • By User
    • December 22, 2024
    • 5 views

    ऊखीमठः मदमहेश्वर घाटी के अन्तर्गत भगवती राकेश्वरी की तपस्थली रासी गाँव धीरे- धीरे पर्यटक गांव के रूप में विकसित होने का रहा है।

    • By User
    • December 22, 2024
    • 4 views
    ऊखीमठः मदमहेश्वर घाटी के अन्तर्गत भगवती राकेश्वरी की तपस्थली रासी गाँव धीरे- धीरे पर्यटक गांव के रूप में विकसित होने का रहा है।

    बीकेटीसी मुख्य कार्याधिकारी के निर्देश पर संस्कृत विद्यालय कमेड़ा के छात्र – छात्राओं ने श्री बदरीनाथ धाम के शीतकालीन पूजा स्थलों, औली का शैक्षिक भ्रमण किया।

    • By User
    • December 22, 2024
    • 5 views
    बीकेटीसी मुख्य कार्याधिकारी के निर्देश पर संस्कृत विद्यालय कमेड़ा के छात्र – छात्राओं ने श्री बदरीनाथ धाम के शीतकालीन पूजा स्थलों, औली का शैक्षिक भ्रमण किया।

    शतरंज : मानसिक एवं बौद्धिक विकास के लिए उपयोगी खेल।

    • By User
    • December 22, 2024
    • 4 views
    शतरंज : मानसिक एवं बौद्धिक विकास के लिए उपयोगी खेल।