काव्य रत्न डॉ0 रामबली मिश्र, वाराणसी, उ. प्र.।
प्रसन्नता (Hurtful ending= Happiness)।
प्रसन्नता मिले तभी मनुष्य कष्ट मुक्त जब।
समाप्त रोग दोष हो निरोग मन सुखांत तब।
रहे न हानि का मलाल द्वंद्व सर्व नष्ट हो।
समत्व योग सिद्ध हो विधान ईश स्पष्ट हो।
विराट भावना दिखे प्रसन्नता तभी मिले।
विराग लोक भेद से हृदय कमल सदा खिले।
दिखे न काम क्रोध लोभ भोग का विनाश हो।
रहे न देह लिप्तता विवेक का प्रकाश हो।
रहे न चोट का मिजाज क्लेश दर्द दूर हो।
सदैव शांति गेह वास सत्य चाह पूर हो।