डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या (उ0प्र0)
चौपाइयाँ
प्राण-वायु के रक्षक तरुवर।
ये उपयोगी सबसे बढ़कर।।
सुंदर पुष्प,मधुर फल देते।
कभी न कुछ बदले में लेते।।
देव समान वृक्ष को जानो।
इसकी महिमा को पहचानो।।
जहाँ रहे हरियाली छाई।
सारी खुशियाँ आएँ धाई।।
वृक्ष वृष्टि के कारक होते।
कटें अगर ये,सुख सब खोते।।
इनको कभी न कटने देना।
यदि जीवन में सुख है लेना।।
आओ मिलकर वृक्ष लगाएँ।
जीवन अपना सुखी बनाएँ।।
हरा-भरा जंगल ही प्यारा।
सुख का रहता सदा सहारा।।