डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या (उ0प्र0)
देश की माटी
देश-धरा की इस माटी से,
नित-नित तिलक लगाना है।
बलिवेदी पर चढ़े लाल जो,
गीत उन्हीं के गाना है।।
उत्तर-दक्षिण, पूरब-पश्चिम,
कण-कण रज का प्यारा है।
अमर शहीदों की शोणित की,
बहती इसमें धारा है।
लिए महक यह चंदन जैसी,
लगती देव-ठिकाना है।।
बलिवेदी पर चढ़े लाल………..।।
वन-उपवन,गिरि-सिंधु, सरित-जल,
सबमें देव निवास करें।
ऋषि-मुनि, सारे संत-तपस्वी,
इसमें ही विश्वास करें।
अन्न-फूल-फल भरी धरा यह,
सुख-समृद्धि-खजाना है।।
बलिवेदी पर चढ़े लाल………….।।
चिंतक-साधक, कवि-लेखक गण,
करें ज्ञान-विस्तार यहाँ।
हर-पल होता नव अन्वेषण,
बहे ज्ञान-नव धार यहाँ।
देव-लोक में तरस देव सब,
कहते इसको पाना है।।
बलिवेदी पर चढ़े लाल………….।।
इस माटी के लाल सदा ही,
इसके रक्षक बने रहे।
अरि-दल का अभिमान मिटाए,
यद्यपि शोणित सने रहे।
चंदन जैसी तिलक योग्य यह,
मौसम यहाँ सुहाना है।।
बलिवेदी पर चढ़े लाल जो,
गीत उन्हीं के गाना है।।