डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या (उ0प्र0)
दुआ
तुझे हो मोबारक तेरा प्यारा दिलवर,
मेरे दिल चमन को शिकायत नहीं है।
चली जा कली बन के तू उस चमन की-
मेरे दिल को कोई शिकायत नहीं है।।
तुझे हो मोबारक………।।
दुनिया तो बगिया है जिंदगी की,
शम्मा है मोहब्बत की रौशनी की।
चिराग़े मोहब्बत तो जलता ही रहता-
सदा रौशनी की इनायत रही है।।
तुझे हो मुबारक….।
मेरा क्या ठिकाना, मैं एक दीवाना,
कभी हूँ हक़ीकत, कभी हूँ फसाना।
पतंगा जला है शम्मा की लपट से,
दुनिया-ए-मोहब्बत की रवायत यही है।।
तुझे हो मुबारक….
समझना हमें एक झोका पवन का,
कि उड़ता हुआ एक पंछी गगन का।
सलामत रहे यार तेरा जहाँ में-
ख़ुदा को भी मेरी हिदायत यही है।।
तुझे हो मुबारक….
मोहब्बत ख़ुदा है, खुदा है मोहब्बत,
यही सत्य है, मन में रखना न गफलत।
दूरियाँ देह की कोई मायने न रखतीं-
असलीयत जिंदगी की, कहावत यही है।।
चली जा कली बन के…….।।