डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या (उ0प्र0)
मानवता
मानवता(दोहे)
मानवता की सोच से, वंचित सकल समाज।
लें संकल्प विकास का, शीघ्र इसी का आज।।
दया-धर्म-करुणा सदा, मानव-कुल-श्रृंगार।
यदि अभाव इनका रहे, समझो पशु-आचार।।
मानवता तो देन है, मानव की शुचि सोच।
करें सभी विस्तार अब, इसका निःसंकोच।।
विश्व-शांति-आधार यह, यह निदान जग-शूल।
करें अमल व्यवहार में, यही मनुजता-मूल।।
मानवता दैवत्व है, इसमें ईश – निवास।
मनुज-समाज-अस्तित्व यह, ऐसा है विश्वास।।
अलख जगे इस भाव की, यहाँ सकल संसार।
समय-समय पर विष्णु ने, लिया मनुज-अवतार।।
मानवता से मनुज का, है संबंध प्रगाढ़।
करे मदद केवल यही, जब हो दुख की बाढ़।।