डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या (उ0प्र0)
‘गीतिका'(आँखें)
देखें सदा सुंदर मंजर, ये आँखें,
नहीं देख पातीं भयंकर, ये आँखें।।
विमल नभ में बिखरी आभा से मंडित,
प्यारा सा देखें सुधाकर, ये आँखें।।
पर्वत से झर-झर उतरते जो झरने,
निहारें उन्हीं को बराबर, ये आँखें।।
गोरी को देखें बिना रोके-टोके,
सदा दिव्य देवी बनाकर, ये आँखें।।
दीवानगी इनकी समझ में न आती,
उठातीं कभी तो गिराकर, ये आँखें।।
धोती सदा दागे-नफ़रत को रहतीं,
सहज प्रेम-आँसू बहाकर, ये आँखें।।