आशा है नव साल की, सुखद बने पहचान॥

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प्रियंका सौरभ 

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,

कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)

 

 

आशा है नव साल की, सुखद बने पहचान॥

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खिली-खिली हो जिंदगी, महक उठे अरमान।

आशा है नव साल की, सुखद बने पहचान॥

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दर्द दुखों का अंत हो, विपदाएँ हो दूर।

कोई भी न हो कहीं, रोने को मजबूर॥

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छेड़ रही है प्यार की, मीठी-मीठी तान।

नए साल के पँख पर, ख़ुशबू भरे उड़ान॥

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बीत गया ये साल तो, देकर सुख-दुःख मीत।

क्या पता? क्या है बुना? नई भोर ने गीत॥

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माफ़ करे सब गलतियाँ, होकर मन के मीत।

मिटे सभी की वेदना, जुड़े प्यार की रीत॥

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जो खोया वह सोचकर, होना नहीं उदास।

जब तक साँसे हैं मिली, रख खुशियों की आस॥

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पिंजड़े के पंछी उड़े, करते हम बस शोक।

जाने वाला जायेगा, कौन सके है रोक॥

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पथ के शूलों से डरे, यदि राही के पाँव।

कैसे पहुँचेगा भला, वह प्रियतम के गाँव॥

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रुको नहीं चलते रहो, जीवन है संघर्ष।

नीलकंठ होकर जियो, विष तुम पियो सहर्ष॥

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दुःख से मत भयभीत हो, रोने की क्या बात।

सदा रात के बाद ही, हँसता नया प्रभात॥

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चमकेगा सूरज अभी, भागेगा अँधियार।

चलने से कटता सफ़र, चलना जीवन सार॥

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काँटें बदले फूल में, महकेंगें घर-द्वार।

तपकर दुःख की आग में, हमको मिले निखार॥

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