डॉ0 हरि नाथ मिश्र, अयोध्या, (उ0प्र0)
मधुरालय
सुरभित आसव मधुरालय का
प्रकृति प्रदत्त गुणो का आलय,
मधु-आलय हृद-आलय है।
सर्व शास्त्र-ज्ञान सुख देता-
दूर भगा विपताई है ।।
दुःख से बोझिल जब उदास मन,
आकर शरणागत होता।
बिना भेद दे तुष्टि चित्त को-
करता जन कुशलाई है।।
मृदुल कुसुम सम प्रकृति इसीकी,
सबको गले लगाता है।
करता वही कर्म सँग सबके-
कहते जिसे भलाई है।।
सर्वधर्म-समभाव-भाव का,
प्रबल समर्थक यह आलय।
सच्ची राह दिखाता सबको-
जब आती कठिनाई है।।
ब्रह्मानंद सहोदर आलय,
परमधाम-सुख देता है।
आठोनिधि-नवनिधि यह आलय-
इसमें ही प्रभुताई है।।
उच्च कल्पना कवि की सारी,
दर्शन चिंतक-साधक के।
स्रोत सकल सोच यह आलय-
सकल स्रोत करुणाई है।।
गंगा-यमुना की लहरों सी,
इसमें शुचिता बहती है।
महानदी-कृष्णा-कावेरी-
महासिंधु- गहराई है।।
सोन-नर्मदा-राबी-सतलज,
केन -बेतवा -चंबल की।
महानदी सरिता गोदावरि-
की जैसी सुघराई है।।